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________________ अलङ्कारों का स्वरूप-विकास [ ४३१ उद्भट ने उपमेय और उपमान के मनोहारी साधर्म्य को उपमा कहा और उसमें भामह की तरह देश, काल आदि की भिन्नता को भी स्वीकृति दी।' आचार्य वामन ने भामह के उपमा-लक्षण को ही सूत्रबद्ध किया है।' आचार्य रुद्रट ने भी पूर्वाचार्यों की तरह दोनों में उपमेय और उपमान में एक समान गुण या साधारण धर्म का सद्भाव उपमा के लिए आवश्यक माना है। ____ कुन्तक ने वर्ण्य वस्तु के स्वभाव की मनोहारिता की सिद्धि के लिए उत्कृष्ट मनोहरता वाली किसी वस्तु के साथ उसकी तुलना में उपमा का सद्भाव माना। कुन्तक के इस उपमा-लक्षण में उनका यह अभिप्राय जान पड़ता है कि उपमा-योजना की सार्थकता वर्ण्य वस्तु के सौन्दर्य आदि के प्रभाव की वृद्धि में है। यह मान्यता उचित ही है। केवल उपमा में ही नहीं, सर्वत्र अप्रस्तुत-योजना का उद्देश्य प्रस्तुत की प्रभावोत्पादकता की वृद्धि ही होनी चाहिए। अग्निपुराणकार ने दण्डी के उपमा-लक्षण को स्वीकार कर उसमें लोकव्यवहार का तत्त्व मिला दिया। इस प्रकार लोक-सीमा में किञ्चित् सारूप्य के आधार पर एक वस्तु की दूसरी वस्तु के साथ तुलना अग्निपुराणकार के मतानुसार उममा है।५ दण्डी के सादृश्य के स्थान पर अग्निपुराण में सारूप्य १. यच्चेतोहारि साधर्म्यमुपमानोपमेययोः । मिथोऽविभिन्नकालादिशब्दयोरुपमा तु तत् ॥ -उद्भट, काव्यालं. सार सं० १,३२ २. उपमानेनोपमेयस्य गुणलेशतः साम्यमुपमा। -वामन, काव्यालं० सू० वृत्ति ४, २, १ तुलनीय, भामह, काव्यालं. २, ३० ३. उभयोः समानमेकं गुणादि सिद्ध भवेद्यथैकत्र । अर्थेऽन्यत्र तथा तत्साध्यत इति सोपमा धा॥ -रुद्रट, काव्यालं० १,४ ४. विवक्षितपरिस्पन्दमनोहारित्वसिद्धये।। वस्तुनः केनचित् साम्यं तदुत्कर्षवतोपमा । -कुन्तक, वक्रोक्तिजी० ३, ३० ५. किञ्चिदादाय सारूप्यं लोकयात्रा प्रवर्तते । समासेनासमासेन सा द्विधा प्रतियोगिनः॥ . -अग्निपुराण, अध्याय, ३४
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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