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________________ अलङ्कारों का वर्गीकरण [ ३६७ के रूप में स्वीकार्य हैं । जिसमें वक्रोक्ति का अभाव था उसके अलङ्कारत्व का भामह ने खण्डन किया । हेतु, सूक्ष्म तथा लेश के अलङ्कारत्व को अस्वीकार करने का यही रहस्य है ।' स्वभावोक्ति अलङ्कार का उल्लेख कर भामह ने कहा है कि कुछ लोगों ने स्वभावोक्ति को भी अलङ्कार माना है । २ स्पष्ट है कि स्वभावोक्ति का अलङ्कारत्व भामह को मान्य नहीं था । भामह के द्वारा स्वीकृत सभी अलङ्कार वक्रोक्तिमूलक ही थे । इसलिए उनके सामने वक्रोक्ति और स्वभावोक्ति-वर्गों में अलङ्कार के विभाजन का प्रश्न नहीं था; पर स्वभावोक्ति आदि के उल्लेख से यह स्पष्ट है कि भामह अपने पूर्ववर्ती अज्ञातनाम आचार्यों के द्वारा निरूपित ऐसे अलङ्कारों के स्वरूप से भी परिचित थे, जिनका मूलभूत तत्त्व वक्रोक्ति या अतिशयोक्ति नहीं, वरन् स्वभावोक्ति था । स्वभावोक्ति तथा स्वभाव - कथन- मूलक अन्य अलङ्कारों के अलङ्कारत्व का प्रश्न विवादग्रस्त रहा है । भामह के उत्तरवर्ती वक्रोक्तिवादी आचार्य कुन्तक ने स्वभावोक्ति आदि के अलङ्कारत्व के खण्डन के लिए तर्क के तीक्ष्ण अस्त्र का प्रयोग किया; फिर भी अलङ्कार - शास्त्र की परम्परा में स्वभावोक्ति का अलङ्कारत्व स्वीकार किया जाता रहा । इतना ही नहीं, कुछ आचार्यों ने स्वभावोक्ति को काव्यालङ्कार में प्रथम स्थान देने का भी प्रयास किया है । यह तो वस्तुतः स्वभावोक्ति के प्रति अतिगामी पक्षपात है; फिर भी संस्कृत तथा हिन्दी - अलङ्कार - शास्त्र की सुदीर्घ परम्परा में स्वीकृत स्वभावोक्ति - जैसे अलङ्कार के अलङ्कारत्व पर आधुनिक अलङ्कारशास्त्र का छात्र सन्देह नहीं करता । परम्परागत मान्यता स्वतः ही प्रमाण • बन जाती है । स्वभावोक्ति को तो अलङ्कार रूप में स्वीकृति मिली ही -पीछे चल कर अनेक ऐसे अलङ्कार स्वीकृत हुए हैं, जिनके मूल में वस्तुरूप का स्वाभाविक वर्णन रहता है । तद्गुण, मीलित, अनुगुण, उदात्त, भाविक, भाविकच्छवि, अनुमान प्रमाण आदि अलङ्कारों के मूल में वस्तु-स्वभाव कथन ही है । ऐसे अलङ्कारों की संख्या अब इतनी अधिक हो गयी है कि इन्हें स्वभावोक्ति के • स्वतन्त्र वर्ग में वर्गीकृत करने की आवश्यकता है । स्वभावोक्ति और वक्रोक्ति १. भामह, काव्यालङ्कार, २, ८५ २. वही, २, ८६ ३. वही, २, ६३
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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