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________________ अलङ्कारों का वर्गीकरण [ ३६५ का ही मिश्रण नियत होने से उस अलङ्कार का स्वरूप निर्धारित है, वहाँ सङ्कर और संसृष्टि में एक से अधिक किन्हीं भी अलङ्कारों के मिश्रण की सम्भावना होने से उनका स्वरूप-निर्धारण सम्भव नहीं। अतः, नियत-स्वभाव तथा अनियत-स्वभाव अलङ्कारों का अध्ययन स्वतन्त्र वर्गों में किया जाना चाहिए । संसृष्टि और सङ्कर का विवेचन कुछ आचार्यों ने 'सङ्कीर्ण' शीर्षक में किया है। इसलिए अलङ्कारों की संसृष्टि तथा उनके सङ्कर को सङ्कीर्ण अलङ्कार-वर्ग में रखा जा सकता है। आश्रय-भेद के आधार पर अलङ्कारों के निम्नलिखित पाँच वर्गों की कल्पना की जा सकती है १. शब्दालङ्कार-वर्ग २. अर्थालङ्कार-वर्ग ३. उभयालङ्कार-वर्ग [४. मिश्रालङ्कार वर्ग तथा 1 ५. सङ्कीर्ण अलङ्कार-वर्ग इन में प्रथम तीन का विभाजन तो केवल उनके आश्रय-भेद के आधार पर है; पर चौथे और पाँचवें वर्गों की कल्पना का आधार तत्तदलङ्कार-तत्त्वों का मिश्रण है। चौथे वर्ग के अलङ्कारों में दो अलङ्कारों के मिश्रण से नियत-स्वभाव विशेष अलङ्कार बन जाता है; पर पांचवें वर्ग में एक आश्रयगत तत्तदलङ्कारों की विशेष प्रकार की स्थिति का ही अध्ययन किया जाता है। शब्दालङ्कार : ___ शब्दालङ्कार में शब्द का चमत्कार प्रमुख रूप से रहता है। इसमें अर्थ: का विचार सर्वथा नहीं होता हो, यह बात नहीं। लाटानुप्रास में तात्पर्यमात्र के भेद से शब्द और अर्थ; दोनों की आवृत्ति अपेक्षित होती है। यमक में एक-से शब्द में अर्थ का भेद रहना आवश्यक माना जाता है। इस प्रकार शब्दालङ्कार में भी अर्थ का विचार रहता है; पर अर्थालङ्कार से इसका भेद यह है कि यह शब्द पर आश्रित रहता है। फलतः, यह अपने आश्रयभूत शब्द का पर्याय-परिवर्तन सहन नहीं कर सकता। अतः, अन्वय-व्यतिरेक से यह सिद्ध किया गया है कि किसी शब्द के स्थान पर उसका पर्यायवाची शब्द रख देने पर यदि अलङ्कारत्व नष्ट हो जाता है तो वह शब्दालङ्कारः होगा। पर्याय-परिवर्तन किये जाने पर भी यदि अलङ्कारत्व नष्ट नहीं होता तो उसे शब्दालङ्कार नहीं माना जा सकता।
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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