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________________ अलङ्कारों का वर्गीकरण [ ३६३ प्रहेलिका आदि गूढार्थवाची शब्दों पर अवलम्बित चित्रालङ्कार भी शब्दार्थाश्रित ही हैं। अतः, शब्द और अर्थ उभय आश्रयों पर एक साथ आश्रित श्लेष, पुनरुक्तवदाभास, वक्रोक्ति तथा प्रहेलिका आदि अर्थ-चित्र को उभयालङ्कार-वर्ग में परिगणित किया जाना चाहिए । अर्थचित्र में 'अर्थ' विशेषण का प्रयोग करने पर भी आचार्य मम्मट ने शब्दालङ्कार-निरूपण के सन्दर्भ में उसका विवेचन किया है। इससे इस मत की पुष्टि होती है कि मम्मट अर्थचित्र को शब्द और अर्थ के बीच की स्थिति में उभयालङ्कार की स्थिति में-मानते थे। श्लेष, पुनरुक्तवदाभास, वक्रोक्ति आदि को शब्दार्थाथित होने के कारण उभयालङ्कार-वर्ग में परिगणित करना युक्तिसङ्गत तो है ही, उनके शब्दालङ्कारत्व या अर्थालङ्कारत्व के विषय में परम्परागत मतभेद को दूर करने की दृष्टि से उपादेय भी है। उभय-सापेक्ष अलङ्कारों में से प्राधान्य के आधार पर कुछ को शब्दालङ्कार तथा कुछ को अर्थालङ्कार माना गया है। मिश्रालङ्कार _ विद्यानाथ ने शब्दालङ्कार और अलङ्कार के अतिरिक्त अलङ्कार का तीसरा वर्ग, मिश्रालङ्कार-वर्ग, स्वीकार किया है और इस तीसरे वर्ग में संसृष्टि और सङ्कर को रखा है । संसृष्टि और सङ्कर में अन्य आचार्यों की तरह विद्यानाथ ने भी अनेक शब्दालङ्कारों, अनेक अर्थालङ्कारों तथा कुछ शब्दालङ्कारों और अर्थालङ्कारों का समानाश्रयत्व स्वीकार किया है। विश्वनाथ ने 'साहित्यदर्पण' में सङ्कर और संसृष्टि को अलङ्कारों का मिश्रित रूप कहा है। इसलिए उन अलङ्कारों को मिश्रालङ्कार-वर्ग में रखा गया है। हम इस तथ्य पर विचार कर चुके हैं कि संसृष्टि और सङ्कर का रूप स्थिर नहीं किया जा सकता । काव्य का कोई भी अलङ्कार दूसरे अलङ्कार के साथ अङ्गाङ्गिभाव से या परस्पर निरपेक्षभाव से समान आश्रय में रह सकता है । अतः, सङ्कर और संसृष्टि को शब्दालङ्कार तथा अर्थालङ्कार से स्वतन्त्र विशेष अलङ्कार नहीं माना जा सकता। शब्दालङ्कार और अर्थालङ्कार वर्गों में गिने जाने वाले अलङ्कार ही संसृष्टि और सङ्कर में रहा करते हैं। संसृष्टि में तो एक आश्रय में अनेक अलङ्कार परस्पर स्वतन्त्र भाव से रहा करते हैं। अतः, अलङ्कारों का मिश्रण भी नहीं माना जाना चाहिए। सङ्कर का भी अलङ्कार-विशेष के मिश्रण से कोई विशेष प्रकार का स्वरूप निर्धारित नहीं किया गया है । अतः, उसे भी
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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