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________________ हिन्दी रीति-साहित्य में अलङ्कार-विषयक उद्भावनाएँ [ ३५७ 'उत्तरोत्तर' शब्द लेकर उसका उत्तरोत्तर नामकरण, अन्योन्य के स्थान पर परस्पर अभिधान का प्रयोग, सन्देह तथा स्मृति के लिए, भ्रान्तिमान् के सादृश्य पर क्रमशः सन्देहवान् तथा स्मृतिमान् व्यपदेश का प्रयोग अकारण है। सम्भव है कि नवीनता-प्रदर्शन के लिए ऐसा किया गया हो। व्याजस्तुति का व्याज-उक्ति नामकरण है तो सकारण; पर वह भ्रमोत्पादक भी हो गया है। व्याजस्तुति नाम में हिन्दी-आचार्यों को केवल व्याज से की जाने वाली स्तुति के अर्थ का बोध कराने की शक्ति जान पड़ी। उसमें स्तुति के व्याज से की जाने वाली निन्दा में अव्याप्ति समझ कर उसका नाम व्याजउक्ति कर दिया गया। इस प्रकार इस नाम-परिवर्तन से एक समस्या तो उन्होंने सुलझायी, पर दूसरी विकट उलझन आ पड़ी। प्राचीन, आचार्यों की व्याजोक्ति की भी सत्ता उन्होंने स्वीकार की है। परिणामतः, दो अलङ्कारों का एक ही नाम हो गया, जो अवैज्ञानिक है। (४) हिन्दी में चित्र अलङ्कार का व्यापक और स्वतन्त्र वर्णन हुआ है। कई स्वतन्त्र ग्रन्थों में केवल चित्र के ही विविध रूपों की कल्पना की गयी है। अतः, हिन्दी में अनेक नवीन बन्धों की कल्पना हुई है। चित्र में विशेष रुचि साहित्यिक रुचि की विकृति का परिचायक है, जो हिन्दी-रीतिकाल की विकृत सामाजिक दशा की दुर्वार साहित्यिक परिणति थी। तत्कालीन राज-दरबारों में कवि दूरारूढ कल्पना से, मानसिक व्यायाम से, श्रोता को चमत्कृत करने का प्रयास करते थे। अतः चित्रकाव्य का, जिसका उद्देश्य ही क्रीड़ा-गोष्ठी-विनोद होता है, रीतिकाल में विकास हुआ और अलङ्कार-शास्त्र में उसका विशद विवेचन किया गया। चित्रों के विविध भेदों की कल्पना की सम्भावना प्राचीन आचार्यों ने भी स्वीकार की थी। (५) केशव का अमित अलङ्कार मौलिक है और उसकी उद्भावना का श्रेय उन्हें मिलना चाहिए । (६) हिन्दी-अलङ्कार-शास्त्र में अलङ्कार के क्षेत्र में विशेष महत्त्वपूर्ण उद्भावना नहीं हो पायी।
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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