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________________ हिन्दी रीति-साहित्य में अलङ्कार-विषयक उद्भावनाएं [ ३२५ अतिशयोक्ति, सामान्यविशेष, तुल्ययोगिता, दीपक, आवृत्तिदीपक, प्रतिवस्तुपमज्ञान, दृष्टान्त, निदर्शना, व्यतिरेक, सहोक्ति, विनोक्ति, समासोक्ति, परिकर, परिकराङ कुर, श्लेष, अप्रस्तुतप्रशंसा, पर्यायोक्ति, व्याजस्तुति, आक्षेप, विरोध, विभावना, विशेषोक्ति, असम्भव, असङ्गति, विषम, सम, विचित्र, प्रहर्षण, विषादन, अधिक, विशेष, विपरीत, अन्योन्य, व्याघात, गुम्फं, एकावली, मालादीपक, सार, यथासंख्य, पर्याय, परिवृत्त, परिसंख्या, विकल्प, समाधि, प्रत्यनीक, अर्थापत्ति, काव्यलिङ्ग, अर्थान्तरन्यास, प्रौढोक्ति, सम्भावना, मिथ्याध्यवसिति, ललित, उल्लास, अवज्ञा, अनुज्ञा, लेश, तद्गुण, पूर्वरूप, पूर्वावस्था, अतद्गुण, अनुगुण, मीलित, उन्मीलित, सामान्य, विशेषक, गूढोत्तर, चित्रोत्तर, सूक्ष्म, पिहित, व्याजोक्ति, युक्ति, लोकोक्ति, छेकोक्ति, वक्रोक्ति, स्वभावोक्ति, भाविक, भाविकछवि, उदात्त, अत्युक्ति, निरुक्ति, प्रतिषेध, विधि, अनुमान और सङ्कर। गुम्फ कारणमाला का पर्याय है । कारणमाला के लक्षण में अप्पय्य दीक्षित ने गुम्फ शब्द का प्रयोग किया था। वहीं से गुम्फ संज्ञा गृहीत है। ..... विपरीत का अभिधान तो केशव से लिया गया है; पर उसका स्वरूप नवीन रूप में कल्पित है। केशव ने कार्य के साधन के ही बाधक बन जाने में विपरीत अलङ्कार माना था; पर भूषण की मान्यता है कि जहाँ आधार को आधेय तथा आधेय को आधार बना दिया जाय, वहाँ विपरीत अलङ्कार होगा। भारतीय काव्य-शास्त्र में प्राचीन काल से ही आधाराधेय-भाव-सम्बन्ध पर आधृत कई अलङ्कार प्रचलित रहे हैं। विशेष, अधिक, अल्प आदि ऐसे ही अलङ्कार हैं। प्रतीप में उपमान और उपमेय में एक के दूसरे रूप में प्रकल्पन की धारणा है। उससे आधाराधेय में पारस्परिक परिवर्तन की धारणा मिला कर विपरीत का स्वरूप निर्मित है। विपरीत नाम्ना प्राचीन होने पर भी स्वरूपतया नवीन है। इसके स्वरूप-निर्माण के लिए उपरिलिखित दो अलङ्कारों से तत्त्व लिया गया है। भूषण ने पूर्वरूप से पृथक् पूर्वावस्था के अस्तित्व की कल्पना की है। दोनों के स्वरूप में इतना साम्य है कि पूर्वरूप से स्वतन्त्र पूर्वावस्था की कल्पना १. गुम्फः कारणमाला स्यात् .........।-अप्पय्य, कुवलयानन्द, १०४ २. जहिं अधार आधेय करि अरु आधेय आधार।. ताहि कहत विपरीत है ........"।-भूषण, शिवराज भूषण, २०५
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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