________________
२९८ ]
अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
शब्दालङ्कार __ यमक, अनुप्रास (छेकानुप्रास, लाटानुप्रास आदि) पुनरुक्तवदाभास, वक्रोक्ति. श्लेष, चित्र, बन्ध, भाषासम, जाति, गति, रीति, वृत्ति, छाया, मुद्रा, उक्ति, युक्ति, भणिति, गुम्फना, शय्या, पठिति, वाकोवाक्य, प्रहेलिका, गूढ़, प्रश्नोत्तर, अध्येय, श्रव्य, प्रेक्ष्य और अभिनेय ।
चित्र, बन्ध, प्रहेलिका आदि का विवेचन कुछ आचार्यों ने यमक के भेद के रूप में किया है; किन्तु अन्य आचार्यों ने उन्हें स्वतन्त्र अलङ्कार माना है । भाषासम से अभिनेय तक परिगणित अलङ्कारों को अलङ्कार-शास्त्र के बहुत कम आचार्यों ने स्वीकार किया है। उनमें रीति, वृत्ति आदि तो काव्य के स्वतन्त्र तत्त्व ही हैं। श्रव्य, प्रक्ष्य आदि को अलङ्कार मानने में कोई युक्ति नहीं। इस प्रकार निम्नलिखित शब्दालङ्कार ही आलङ्कारिकों को बहुमान्य हुए हैं :-यमक, अनुप्रास, पुनरुक्तवदाभास, वक्रोक्ति तथा श्लेष । चित्र, बन्ध प्रहेलिका आदि को-जिनमें वर्गों के विशिष्ट गुम्फ से चमत्कार उत्पन्न किया जाता है—अनुप्रास, यमक आदि का भेद मानना ही समीचीन है। अर्थालङ्कार
उपमा, रूपक, दीपक, प्रतिवस्तूपमा, आक्षेप, अर्थान्तरन्यास, व्यतिरेक या भेद, विभावना, समासोक्ति, अतिशयोक्ति, यथासंख्य या क्रम, उत्प्रेक्षा, स्वभावोक्ति या जाति या स्वरूप, प्रेय, रसवत्, ऊर्जस्वी, पर्यायोक्त, समाहित, उदात्त, श्लिष्ट, अपह नुति, विशेषोक्ति, विरोध, तुल्ययोगिता, अप्रस्तुतप्रशंसा, व्याजस्तुति, निदर्शना, उपमारूपक, उपमेयोपमा, सहोक्ति, परिवृत्ति, ससन्देह, अनन्वय, उत्प्रेक्षावयव, भाविक, आशीः, हेतु, सूक्ष्म, लेश, काव्यलिङ्ग, दृष्टान्त, व्याजोक्ति, समुच्चय, भाव, पर्याय, विषम, अनुमान, परिकर, परिसंख्या, कारणमाला, अन्योन्य, उत्तर, सार, उदारसार, अवसर, मीलित, एकावली, मत, प्रतीप, उभयन्यास, भ्रान्तिमान्, प्रत्यनीक, पूर्व, साम्य, स्मरण, विशेष, तद्गुण, अधिक, विषम, असङ्गति, पिहित, व्याघात, अहेतु, सम्भव, वितर्क, प्रत्यक्ष, अनुमान, आप्तवचन या आगम, उपमान, अर्थापत्ति, अभाव, समाध्युक्ति, प्रशस्ति, कान्ति, औचित्य, संक्षेप, यावदर्थता, अभिव्यक्ति, सम, मालादीपक, विनोक्ति, सामान्य, अतद्गुण, परिणाम, उल्लेख, विचित्र, अर्थापत्ति, विकल्प, प्रतीपोपमा, उन्मीलित, परिकरराङ्कर, प्रौढोक्ति, सम्भावना, प्रहर्षण, विषादन, विकस्वर, असम्भव, उल्लास, पूर्वरूप, अनुगुण, अनुकूल,