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________________ २ε२ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण (१०) भ्रान्तिमान्, (११) उल्लेख, (१२) अपह्नति, (१३) उत्प्र ेक्षा, (१४) अतिशयोक्ति, (१५) तुल्ययोगिता, (१६) दीपक, (१७) प्रतिवस्तूपमा, (१८) दृष्टान्त, (१९) निदर्शना, ( २० ) व्यतिरेक, (२१) सहोक्ति, (२२) विनोक्ति, (२३) समासोक्ति, (२४) परिकर, (२५) श्लेष, (२६) अप्रस्तुतप्रशंसा, (२७) पर्यायोक्त, (२८) व्याजस्तुति, (२६) आक्षेप, (३०) विरोध, (३१) विभावना, (३२) विशेषोक्ति, (३३) असङ्गति, (३४) विषम, (३५) सम, (३६) विचित्र, (३७) अधिक, (३८) अन्योन्य, ( ३६ ) विशेष, ( ४० ) व्याघात, (४१) कारणमाला, (४२) एकावली, (४३) सार, (४४) काव्यलिङ्ग, (४५) अर्थान्तरन्यास, (४६) अनुमान, (४७) यथासंख्य, (४८) पर्याय, (४९) परिवृत्ति, (०५) परिसंख्या, (५१) अर्थापत्ति, (५२) विकल्प, (५३) समुच्चय, (५४) समाधि, (५५) प्रत्यनीक, (५६) प्रतीप, (५७) प्रौढोक्ति, (५८) ललित, (५९) प्रहर्षण, (६०) विषादन, (६१) उल्लास, (६२) अवज्ञा, (६३) अनुज्ञा, (६४) तिरस्कार, (६५) लेश, (६६) तद्गुण, (६७) अतद्गुण, (६८) मीलित, ( ६ ) सामान्य और ( ७० ) उत्तर । प्रस्तुत अलङ्कार-तालिका से स्पष्ट है कि पण्डितराज जगन्नाथ ने बहुलांशतः पूर्ववर्ती आचार्यों के द्वारा विवेचित अलङ्कारों का ही स्वरूपनिरूपण किया है । हम देख चुके हैं कि जगन्नाथ का उद्देश्य नवीन अलङ्कारों की उद्भावना करना नहीं, प्राचीन अलङ्कारों के स्वरूप का ही विशदीकरण था । जगन्नाथ ने 'असम' के सन्दर्भ में रत्नाकर का मत उद्धृत किया है । अतः 'असम' नाम को भी जगन्नाथ की कल्पना नहीं माना जा सकता । उदाहरण अलङ्कार भी 'अलङ्काररत्नाकर' से ही गृहीत है । २ प्राचीन आचार्यों ने इसकी स्वतन्त्र सत्ता नहीं मान कर इसके स्वरूप का विवेचन उपमा के अन्तर्गत ही किया है । स्वयं पण्डितराज जगन्नाथ ने इस तथ्य का उल्लेख किया है । 3 "रसगङ्गाधर' में एक नवीन अलङ्कार का उल्लेख है । वह हैतिरस्कार | यह अप्पय्य दीक्षित के अनुज्ञालङ्कार का विपरीतधर्मा है । अनुज्ञा १. अपि त्वसमालङ्कार इति रत्नाकरेणोक्तम् । —जगन्नाथ, रसगङ्गाधर २, पृ० ३३४ २. तुलनीय - शोभाकर, अलङ्कार रत्नाकर पृ० १३ तथा रसगङ्गाधर, पृ० ३३६ ३. प्राश्वस्तु नायमलङ्कारोऽतिरिक्तः । उपमयैव गतार्थत्वात् । —जगन्नाथ, रसगङ्गाधर, पृ० ३४०-१
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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