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________________ अलङ्कार-धारणा का विकास [२६१ वसान' पर आधृत है। सम्बन्धातिशयोक्ति की कल्पना का आधार मम्मट, रुय्यक आदि के असम्बन्ध में सम्बन्ध-वर्णन-रूप अतिशयोक्ति-प्रकार है। भेदकातिशयोक्ति का स्वरूप मम्मट के 'प्रस्तुतस्य अन्यत्व' के आधार पर कल्पित है। स्पष्टतः, अतिशयोक्ति-विषयक प्राचीन मान्यता का ही स्पष्टीकरण जयदेव ने किया है। तुल्ययोगिता तथा दीपक के सम्बन्ध में जयदेव की धारणा मम्मट आदि आचार्यों की धारणा के समान है। जयदेव ने आवृत्तिदीपक का लक्षणनिरूपण किया है। उनका आवृत्तिदीपक आचार्य दण्डी की आवृत्ति से अभिन्न है। प्रतिवस्तूपमा तथा दृष्टान्त की परिभाषाएँ जयदेव ने मम्मट आदि पूर्वाचार्यों के मतानुसार दी हैं। निदर्शना को जयदेव ने किञ्चित् नवीन रूप से परिभाषित किया है, यद्यपि उनकी तद्विषयक धारणा आचार्य मम्मट की धारणा से तत्वतः मिलती-जुलती ही है। उन्होंने सादृश्य के कारण दो वाक्यार्थों में ऐक्य के आरोप में निदर्शना का सद्भाव माना है ।२ 'चन्द्रालोक' की 'रमा' व्याख्या में निदर्शना की उक्त परिभाषा के स्पष्टीकरण में कहा गया है कि इसमें दो वाक्यार्थों में उपमानोपमेय-भाव की कल्पना कर आहार्य अभेदरूप तादात्म्य का आरोप किया जाता है। इस प्रकार व्याख्याकार ने जयदेव की निदर्शना-धारणा को आचार्य मम्मट तथा रुय्यक की तद्विषयक धारणा से अभिन्न सिद्ध किया है। ___ व्यतिरेक और सहोक्ति के सम्बन्ध में जयदेव की धारणा मम्मट, रुय्यक आदि पूर्ववर्ती आचार्यों की धारणा के समान है। ___ मम्मट ने विनोक्ति के दो रूप स्वीकार किये थे—अन्य के बिना अन्य का अशोभन होना तथा अन्य के बिना अन्य का शोभन होना। जयदेव ने इन दोनों में से केवल प्रथम रूप का अलङ्कारत्व स्वीकार किया है। समासोक्ति, श्लेष तथा अप्रस्तुतप्रशंसा का लक्षण-निरूपण जयदेव ने मम्मट आदि की मान्यता के अनुरूप ही किया है। श्लेष के शब्दगत तथा अर्थगत, १. तुलनीय-जयदेव, चन्द्रालोक, ५, ५४ तथा दण्डी, काव्यादर्श २, ११६ २. वाक्यार्थयोः सदृशयोरैक्यारोपो निदर्शना । जयदेव, चन्द्रालाक, ५, ५८ ३. यत्र सादृश्यवशाद्वाक्यार्थयोरैक्यमारोप्यते उपमानोपमेयभावकल्पनाफलको वाक्यार्थयोराहार्याभेदनिश्चयरूपतादात्म्यारोप इति यावत्तत्र निदर्शनालङ्कारः। वही, रमा टीका पृ० ५६
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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