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अलङ्कार-धारणा का विकास
[२२१ लक्षण-कारिका में 'गुणावह' शब्द का प्रयोग किया था। 'गुणावह' का 'उपकारक' अर्थ उन्हें अभीष्ट था, यह उस कारिका की वृत्ति से स्पष्ट है। रुय्यक ने मालादीपक का लक्षण मम्मट के ही मतानुसार दिया है। 'अलङ्कार सर्वस्व' में सूत्र में प्रयुक्त 'गुणावह' का अर्थ उत्कर्षकारक मान कर यह अर्थ किया गया है कि जहाँ पूर्व-पूर्व स्थित वाक्य से उत्तर-उत्तर में स्थित वाक्य के उत्कर्ष का निबन्धन हो, वहाँ मालादीपक अलङ्कार होता है ।' स्पष्ट है कि प्रस्तुत अलङ्कार के सम्बन्ध में रुय्यक की मान्यता मम्मट की मान्यता से अभिन्न है। रुय्यक ने मम्मट के मतानुसार इसे परिभाषित किया, इसका एक प्रमाण यह भी है कि उस परिभाषा के स्पष्टीकरण के लिए मालादीपक के 'काव्यप्रकाश' में उद्ध त उदाहरण का ही उपयोग किया गया है। ___ रुय्यक के 'अलङ्कार सूत्र' में जिन नवीन अलङ्कारों का विवेचन हुआ है, उनके उद्गम-स्रोत की समीक्षा प्रस्तुत सन्दर्भ में अपेक्षित है। रुय्यक ने निम्नलिखित नवीन अलङ्कारों का उल्लेख किया है-(१) परिणाम, (२) उल्लेख, (३) विचित्र, (४) अथ पत्ति और (५) विकल्प । परिणाम
परिणाम रुय्यक की नवीन कल्पना है। जहां आरोप्यमाण का प्रकृत के रूप में उपयोग हो, वहाँ रुय्यक के अनुसार परिणाम नामक अलङ्कार होता है। इसका स्वरूप रूपक से बहुत कुछ मिलता-जुलता है। दोनों में प्रमुख भेद यह है कि रूपक में केवल प्रकृत पर अप्रकृत का आरोप होता है; पर परिणाम में आरोप के साथ ही आरोप्यमाण का प्रकृत में उपयोग भी दिखाया जाता है। इसमें समासोक्ति की तरह अप्रकृत के व्यवहार का प्रकृत पर आरोप होने की धारणा व्यक्त की गयी है। अप्रकृत की प्रकृतार्थ में उपयोगिता की धारणा नवीन है। उल्लेख
रुय्यक का उल्लेख नाम्ना नवीन; किन्तु स्वरूपतया प्राचान है। इसका स्वरूप आचार्य दण्डी के रूपक-भेद 'हेतुरूपक' के समान है। दण्डी ने हेतुरूपक का जो उदाहरण दिया है, उसमें रुय्यक का उल्लेख-लक्षण, घटित १. पूर्वपूर्वस्य तूत्तरोत्तरं प्रत्युत्कर्ष निबन्धनत्वे मालादीपकम् ।
-रुय्यक, अलं० सूत्र, अलं० सर्वस्व, पृ० १७४