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अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण
भी चित्र अलङ्कार का एक भेद मान लिया गया है। मात्रा आदि के च्युत के आधार पर मात्रादिदत्त की कल्पना की गयी है। वाक्याङ्ग में मात्रा आदि प्रदत्त होने पर भी यदि द्वितीय अर्थ की प्रतीति हो तो दत्त चित्र होता है। ___रुद्रट ने चित्र के ही तत्तद्भेदों के रूप में चक्र, खड्ग, तुरग, गज आदि चित्रों या बन्धों का निरूपण किया था। अग्निपुराणकार ने चित्र के उक्त सात भेदों के विवेचन के उपरान्त तत्तद्बन्धों का उल्लेख किया है।२ अर्धभ्रम, सर्वतोभद्र, चक्र, मुरज, खड्ग, शक्ति, आदि बन्धों की कल्पना रुद्रट से ही ली गयी है । रुद्रट ने कुछ बन्धों का नाम्ना उल्लेख कर यह कहा था कि इसी प्रकार विभिन्न वस्तुओं के प्रकार में श्लोकों का विन्यास किया जा सकता है
और उन-उन वस्तुओं के नाम के आधार पर ही तत्तद्बन्धों का नामकरण किया जाता है। अग्निपुराण में गोमूत्रिका, अम्बुज दण्ड आदि बन्धों की भी कल्पना की गयी है। ___ 'अग्निपुराण' का अर्थालङ्कार-विवेचन बहुत अशक्त और अप्रौढ़ है। किसी नवीन अलङ्कार की उद्भावना तो अग्निपुराणकार ने नहीं ही की, पूर्व प्रचलित अर्थालङ्कारों में से भी अनेक को अकारण ही अस्वीकार कर केवल आठ ( या सादृश्य के चार भेदों को लेकर ग्यारह ) अर्थालङ्कारों की सत्ता स्वीकार की। सादृश्य के भी चार ही भेद स्वीकार करने में कोई युक्ति नहीं। यदि सादृश्य पर आधृत होने के कारण उपमा और रूपक आदि को सादृश्य का भेद माना जाय तो उत्प्रेक्षा का सादृश्य से अलग अस्तित्व मानने का क्या आधार होगा? औपम्यमूलक या सादृश्यमूलक अलङ्कार के विंशत्यधिक प्रकारों का निरूपण वामन तथा कुन्तक की रचनाओं में हो चुका था । वामन ने जितने अलङ्कारों का अस्तित्व स्वीकार किया था उन्हें उपमा-प्रपञ्च मान कर उनकी सादृश्यमूलकता स्वीकार की थी। स्पष्टतः सादृश्य के चार ही भेद की स्वीकृति समीचीन नहीं । 'अग्निपुराण' के अर्थालङ्कारों का स्वरूप पूर्ववर्ती आचार्यों के ही मतानुसार कल्पित है। भरत, भामह, दण्डी आदि आचार्यों की तत्तदलङ्कारधारणा के आधार पर अग्निपुराणकार ने अर्थगत अलङ्कारों का लक्षणनिरूपण किया है। दण्डी की अलङ्कार-धारणा का उन पर सर्वाधिक प्रभाव है।
१. अग्निपुराण, ३४३,२८ २. अग्निपुराण, ३४३, ३५-६५ ३. रुद्रट, काव्यालङ्कार, ५, ३३