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________________ २०२ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण यह शब्द आक्षेप के लक्षण 'प्रतिषेधोक्तिराक्षेपः' से गृहीत है । परिकर के लिए परिष्कृति व्यपदेश का प्रयोग किया गया है । सङ्कर और संसृष्टि के स्थान पर केवल संसृष्टि की सत्ता स्वीकृत है । प्राचीन आचार्यों के सङ्कर का स्वरूप इसीके एक भेद के रूप में विवेचित है । साम्य में दृष्टान्तोक्ति, प्रतिवस्तूक्ति तथा प्रपञ्चोक्ति का; उत्प्रेक्षा में मत का; अर्थान्तरन्यास में उभयन्यास, प्रत्यनीकन्यास एवं प्रतीकन्यास का और परिष्कृति या परिकर में एकावली का अन्तर्भाव मान कर प्राचीन आलङ्कारिकों के द्वारा स्वीकृत संख्या को चौबीस में ही सीमित कर दिया गया है । star समाधि गुण समाध्युक्ति नाम से अलङ्कार की पंक्ति में परिगणित कर लिया गया है । संख्या आदि का पूर्वाग्रह लेकर अलङ्कारों की स्वरूप-मीमांसा करने का फल यह हुआ कि भोज की रचना में स्वस्थ तत्त्व-निरूपण के स्थान पर कल्पना - विलास की प्रधानता हो गयी । प्राचीन आचार्यों के कुछ अलङ्कारों को भोजराज ने यथावत् स्वीकार कर लिया; कुछ के सामान्य स्वरूप की धारणा पूर्ववर्ती आचार्यों से लेकर भी उनके कुछ नवीन भेदोपभेदों की कल्पना कर ली; आचार्य भरत के कुछ लक्षणों के स्वरूप के आधार पर, दण्डी आदि के कुछ गुण के स्वरूप के आधार पर तथा कुछ दार्शनिक तथ्यों के आधार पर कुछ नवीन अलङ्कारों अथवा अलङ्कार-भेदों की विवेचना की; कुछ प्राचीन अलङ्कारों कोही नवीन नाम दे दिये तथा कुछ अलङ्कारों में अन्य का अन्तर्भावन मान कर शब्दगत, अर्थगत एवं उभयगत अलङ्कारों की संख्यागत एकरूपता का एक विलक्षण सिद्धान्त निरूपित किया । O अग्निपुराण भोजराज और अग्निपुराणकार की अलङ्कार - निरूपण-पद्धति एक-सी है । 'सरस्वतीकण्ठाभरण' तथा 'शृङ्गार - प्रकाश' की तरह 'अग्निपुराण' में भी शब्दगत और अर्थंगत अलङ्कारों के अतिरिक्त उभयालङ्कारों का एक वर्ग कल्पित है, किन्तु अलङ्कार - विचारगत इस समता के होने पर भी अग्निपुराणकार संख्याविषयक पूर्वाग्रह से मुक्त रहे हैं । प्रस्तुत सन्दर्भ में हम 'अग्निपुराण' में प्रतिपादित अलङ्कारों का, प्राचीन आचार्यों के अलङ्कारों से सम्बन्ध की दृष्टि से परीक्षण करेंगे ।
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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