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अलङ्कार-धारणा का विकास ..
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भाव
भोज के भाव का स्वरूप रुद्रट के वास्तव वर्ग-गत भाव अलङ्कार के समान है। प्रत्यक्ष, अनुमान, प्राप्तवचन या आगम, उपमान, अर्थापत्ति, अभाव
प्रत्यक्ष आदि छह प्रमाणों की अलङ्कार के रूप में मान्यता भोज की नवीनता है; किन्तु इनके स्वरूप की कल्पना में उनकी कोई मौलिकता नहीं। यह सर्वविदित है कि भारतीय दर्शन की विभिन्न शाखाओं में प्रमाण के तत्तदङ्गों का सूक्ष्म विवेचन हुआ है। प्रमाणों की संख्या के विषय में दार्शनिकों का मतभेद भी विख्यात है । जैमिनीय सूत्र की प्रमाण-मीमांसा का भोज की अलङ्कार-धारणा पर पुष्कल प्रभाव पड़ा है। दर्शन के ये छह प्रमाण भोज के द्वारा काव्यालङ्कार के रूप में स्वीकृत हैं। उन्होंने उपमान के उदाहरणों में मीमांसक, नैयायिक आदि के मतों का स्पष्ट उल्लेख भी किया है।' उपमान में अभिनय, आलेख्य, मुद्रा एवं प्रतिबिम्ब नामक नवीन अलङ्कारों का अन्तर्भावन भोज ने माना है। सम्भव है, भोज के समय इन अलङ्कारों का स्वतन्त्र अस्तित्व कुछ आचार्यों ने स्वीकार किया हो। अभाव अलङ्कार में न्यायशास्त्र में विवेचित अभाव के सभी अङ्गों का उल्लेख किया गया है।
उभयालङ्कार
उभयालङ्कार-वर्ग में भोज ने जिन चौबीस अलङ्कारों का उल्लेख कर उनके स्वरूप का विवेचन किया है, उनमें से दो-तीन को छोड़ शेष सभी अलङ्कारों का स्वरूप प्राचीन है। उपमा, रूपक आदि के सम्बन्ध में पूर्ववर्ती आचार्यों की सामान्य धारणा को स्वीकार कर स्नकी विस्तृत मीमांसा की गयी है। तत्तदालङ्कारिकों की धारणाओं को मिला कर उन अलङ्कारों के अनेक भेदोपभेदों की भी कल्पना कर ली गयी है। भेदीकरण की प्रवृत्ति भोज की अपनी विशेषता थी। अतः उन भेदोपभेदों में कल्पना-विलास ही पाया जा
१. .."तदिदमनुभूत विषयं नाम उपमानं मीमांसका वर्णयन्ति । xxxx त दिदमननुभूतविषयं उपमानं नैयायिका: समुन्नयन्ति।
-भोज, सरस्वतीकण्ठाभरण, वृत्ति पृ० ४१४-१५ (क) २. तथाभूतार्थविज्ञानजनकत्वेन हेतुना।
नास्मादभिनयालेस्यमुद्रा बिग्बादयः पृथक् ।।-वही, ३, ६१०