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________________ अलङ्कार-धारणा का विकास [ १७७ करते हैं । अतः उन्हें काव्य का केवल बाह्य तत्त्व कह कर उपेक्षित नहीं किया जा सकता । अलङ्कार काव्य के बाह्य और अन्तरङ्ग दोनों ही धर्म माने जान सकते हैं । आनन्दवर्द्धन ने अपृथग्यत्ननिर्वर्त्य अलङ्कार को अन्तरङ्ग एवं पृथग्यत्ननिर्वर्त्य अलङ्कार को बहिरङ्ग स्वीकार किया है । एक ही नाम के अलङ्कार अन्तरङ्ग भी हो सकते हैं और बहिरङ्ग भी । कुन्तक की रसवद-लङ्कार-धारणा के विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि वे भी अलङ्कार के. रसवत् एवं सामान्य, दो वर्ग मानते थे । रसवत् वर्ग के अलङ्कारों को आनन्द- . वर्द्धन के अपृथग्यत्ननिर्वर्त्य ध्वन्यलङ्कार या अन्तरङ्ग अलङ्कारों के समकक्ष माना जा सकता है । कुन्तक की रसवत्-धारणा के विवेचन से निम्नलिखित निष्कर्ष प्राप्त होते हैं (क) कुन्तक रसवत् नामक अलङ्कार की गणना करने पर भी उसे स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं दिला पाये । उनके लक्षण के अनुसार रसवत् स्वतन्त्र अलङ्कार नहीं होकर अलङ्कारों का एक वर्ग मात्र बन जाता है, जिसमें उपमा आदि सभी अलङ्कार आ सकते हैं । कुन्तक ने काव्य : में इसका मूर्धन्य स्थान माना है । (ख) रसवत् अलङ्कार-वर्ग की कल्पना का मूल आनन्दवर्द्धन की अपृथग्-यत्ननिर्वत्य अलङ्कार वर्ग की कल्पना में पाया जा सकता है । (ग) रसवत् के स्वरूप की कल्पना में पूर्ववर्ती आचार्यो की समासोक्ति-धारणा का भी प्रभाव स्पष्ट है । (घ) यह कुन्तक की स्वतन्त्र उद्भावना नहीं । दीपक भामह आदि आचार्यों की मान्यता थी कि जहाँ वाक्य के आरम्भ, मध्य या अन्त में स्थित एक क्रिया-पद अनेक पदों को दीपित करता हो, वहाँ दीपक नामक अलङ्कार होता है । उनके मतानुसार दीप्यमान पदों की अपेक्षा स्थित क्रियापद ही दीपक नामक अलङ्कार होंगे । कुन्तक को यह मत मान्य नहीं । उनकी मान्यता है कि क्रिया-पद प्रकाशक या दीपक अवश्य होते हैं किन्तु दीपकता केवल उन्हीं में नहीं रहती । उनसे भिन्न पद भी दीपक हो सकते हैं । कर्त्ता, कर्म, करण आदि सभी पद पारस्परिक सम्बन्ध का द्योत करते ही हैं । अतः, दीपकत्व के आधार पर यदि क्रियापदों को दीपक कहा १. भामह - काव्यालं० २, २५-२६ १२
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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