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________________ अलङ्कार-धारणा का विकास [८३ हेतु, सूक्ष्म और लेश हम देख चुके हैं कि भामह ने हेतु, सूक्ष्म और लेश के अलङ्कारत्व का खण्डन किया है ।' किन्तु; दण्डी ने उन्हें न केवल अलङ्कार के रूप में स्वीकृति दी वरन् वाणी के उत्तम भूषण के रूप में गौरव प्रदान किया ।२ इन अलङ्कारों के स्वरूप की परीक्षा से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि इन्हें उत्तम अलङ्कार कहने में दण्डी का उद्देश्य इनके विषय में अपने पूर्ववर्ती आचार्य भामह के उपेक्षात्मक विचार का सबल विरोध-मात्र करना था। इन अलङ्कारों की उत्तमता का कारण निर्दिष्ट नहीं। अस्तु, प्रस्तुत प्रसङ्ग में उनके उद्गमस्रोत का अन्वेषण वाञ्छनीय है। भामह ने हेतु, सूक्ष्म और लेश का नाम्नव उल्लेख किया है। दण्डी ने उनके स्वरूप का सोदाहरण विवेचन किया है। किसी कार्य के साथ उसके हेतु का कथन हेतु अलङ्कार है। हेतु दो प्रकार के होते हैं—कारक तथा ज्ञापक। वे कारक एवं ज्ञापक हेतु अनेक प्रकार के होते हैं। हेतु की विविधता के अनुरूप हेतु अलङ्कार के भी विविध भेद माने गये हैं। भरत ने 'नाट्यशास्त्र' में हेतु लक्षण का उल्लेख किया है, जिसमें वक्ता किसी वस्तु के सम्बन्ध में अनेक कथन का निरादर कर उस विषय में अपनी मान्यता प्रकट करता है और अपनी मान्यता की स्थापना के लिए हेतु का निर्देश करता है । 3 सकारण कथन होने के कारण इसे सहेतु कहा गया है। हेतु अलङ्कार में हेतुमान के साथ हेतु के उल्लेख की धारणा का प्रादुर्भाव उक्त लक्षण के स्वरूप के आधार पर ही हुआ है । दर्शन-शास्त्र की विभिन्न शाखाओं में कार्य तथा कारण के स्वरूप का सूक्ष्म विवेचन हुआ है। कारण के विविध प्रकार के आधार पर दण्डी ने हेतु अलङ्कार के तत्तद्भेदों की कल्पना कर ली है। हृद्गतभाव. के बोधक इङ्गितों से तथा विशेष प्रकार की मुखाकृति से अर्थ का लक्षित होना सूक्ष्म अलङ्कार माना गया है। इस अलङ्कार का १. हेतुश्च सूक्ष्मो लेशोऽथ नालङ्कारतया मतः । –भामह, काव्यालं० २,८६ तुलनीय२. हेतुश्च सूक्ष्मलेशौ च वाचामुत्तमभूषणम् ।—दण्डी, काव्याद० २,२३५ ३. बहूनां भाषमाणानां त्वेकस्यार्थविनिर्णयम् । सिद्धोपमानवचनं हेतुरित्यभिसङ ज्ञितः ॥ . -भरत, ना० शा० १६, १४ ४. इङ्गिताकारलक्ष्योऽर्थः सौक्ष्म्यात् सूक्ष्म इति स्मृतः ।। -दण्डी, काव्या०, २, २६०
SR No.023467
Book TitleAlankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhakant Mishra
PublisherBihar Hindi Granth Academy
Publication Year1972
Total Pages856
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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