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________________ वृत्तमौक्तिक ६२ ] mmmmmmmmmmm ह, और इ नगण, भाव, रस, भामिनी आदि कर्ण, सुरतलता, आदि ध्वज, चिह्न, चिरालय आदि सुप्रिय, परम हार, ताटंक, नूपुर आदि शर, मेरु, कनक, दण्ड आदि - - जानाश्रयी छन्दोविचिति ho - - - - 555 ISS SIS ।। SSI । । 5।। गङ्गास् नदीज ननुर् नूनंसाग् कृशाङ्गीम् धीवराश् कुरुतेल तेश्री:क्वब् विभातिक सातवत् तरतिम् नचरतिद् चन्द्रननु नदीननु ननुचन्द्र कमलिनीय लोलमाला रौतिमयूरो धैर्यमस्तुतेट ननुतरति जयनरवरण वृत्तमौक्तिक ग, हार, ताटंक आदि ल, शर, मेरु आदि गुरुयुगल, कर्ण, रसिक आदि वलय, तोमर, पवन आदि सुप्रिय, परम, मगण, हर, यगण, कुञ्जर, रदन, मेघ आदि रगण, गरुड, भुजंगम, विहग आदि सगण, कमल, हस्त, रत्न आदि तगण, होर, जगण, भूपति, कुच आदि भगण, तात, पद, जंघायुगल आदि नगण, रस, ताण्डव आदि विप्र, द्विज, बाण आदि अहिगण कुसुम शेखर चाप 5।।। ।5।। ।।5। ।।।5 SIISS SISIS पापगण . शालि
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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