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________________ भूमिका [ ५६ की टीका भी है। उदाहरण के एक-एक चरण हैं। तीनों ही विरुदावलियों के प्रत्युदाहरण दिये हैं जो कि रूपगोस्वामिकृत गोविन्दविरुदावली के हैं । ग्रंथकार ने तीनों ही भेद चण्डवृत्त के ही प्रभेद माने हैं । (४) साधारण-चण्डवृत्त-अवान्तर-प्रकरण इस प्रकरण में साधारण चण्डवृत्तों के लक्षण एवं उदाहरण दिये गये हैं। (५) विरुदावली-प्रकरण __ साप्तविभक्तिकी कलिका, अक्षमयी कलिका और सर्वलघु कलिका के लक्षण देकर इन कारिकाओं की व्याख्या दी है। इन तीनों के स्वयं के उदाहरण नहीं हैं । तीनों ही कलिकाओं के उदाहरण गोविन्दविरुदावली से उद्धृत हैं । अन्त में समग्र कलिकाओं में प्रयुक्त विरुदों के युगपद् लक्षण कहे हैं। देव, भूपति एवं तत्तुल्यवर्णनों में धीर, वोर आदि विरुदों का प्रयोग होता है। संस्कृत-प्राकृत के श्रव्यकाव्यों में शौर्य, वीर्य, दया, कीर्ति और प्रतापादि प्रधान विषयों में कलिकादि का प्रयोग होता है। गुण, अलङ्कार, रीति, मैत्र्यनुप्रास एवं छन्दाडम्बर से युक्त कलिका और विरुद का निरूपण करते हुए समग्र विरुदावलियों के सामान्य लक्षण दिये हैं। इसके अनुसार कलिका-इलोकविरुद न्यूनातिन्यून पन्द्रह होते हैं और अधिक से अधिक नव्वे होते हैं। नव्वे कलिकाश्लोक विरुद युक्त विरुदावली अखंडा विरुदावली या महती विरुदावली कहलाती है । मतान्तर के अनुसार किसी कलिका के स्थान पर केवल गद्य होता है या विरुद होता है और कलिका एवं विरुद आशीर्वादात्मक पद्यों से युक्त होता है । प्रत्येक विरुदावली में तीन या पांच कलिकायें और इतने.ही श्लोकों की रचना ऐच्छिक होती है । अंत में विरुदावली का फल-निर्देश है। १०. खण्डावली-प्रकरण विरुदावली के समान ही खंडावली होती है किन्तु इतना अंतर है कि आदि और अंत में आशीर्वादात्मक पद्य विरुदरहित होते हैं । तामरसखंडावली और मञ्जरी-खंडावली के लक्षणसहित उदाहरण दिये हैं। लक्षणकारिकाओं की टीका भी है । अंत में कवि कहता है कि खंडावली के हजारों भेद सम्भव हैं किंतु ग्रंथ विस्तारभय से मैंने इसके भेदों के उल्लेख नहीं किये हैं; केवल सुकुमारमतियों के लिये मार्ग-प्रदर्शन किया है। ११. दोष-प्रकरण इस प्रकरण में विरुदावली और खण्डावली के दोषों का दिग्दर्शन कराया
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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