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________________ ४२ ] वृत्तमौक्तिक अन्त- श्रीमत्पिङ्गलनागोक्तमात्रावृत्तप्रकाशकम् । पिङ्गलोद्योतममलमविस्तृतमपि स्फुटम् ।। हराक्षिमुनिशास्त्रेन्दुमितेऽब्दे (१६७३) मासि चाश्विने । सिते""मिते चन्द्रशेखरः संव्यरीरचत् ।। पुष्पिका- इति महामहोपाध्यायालङ्कारिकचक्रचूडामणि-छन्दःशास्त्रप्रस्थानपरमाचार्य-वेदान्तार्णवकर्णधार-श्रीलक्ष्मीनाथभट्टारकात्मज-चन्द्रशेखरभट्ट विरचितायां पिङ्गलोद्योताख्यायां सूत्रवृत्ती मात्रावृत्ताख्यः प्रथमः प्रकाशः समाप्तः । समाप्त. श्चायं सूत्रवृत्तौ प्रथमः खण्डः । संयोज्य पाणियुगलं याचे साधूनहं किमपि । मत्सररहितैर्यत्नात् संशोध्यं में क्वचित् स्खलितम् ।। भट्ट लक्ष्मीनाथ ने वृत्तमौक्तिक-वार्तिकदुष्करोद्धार' में इस पिंगलोद्योत टीका के उद्धरण दिए हैं । ४. वृत्तमौक्तिकम् छन्दःशास्त्र का प्रस्तुत ग्रन्थ है। इसमें दो खंड हैं । प्रथम मात्रावृत्त खंड; जिसकी १६७५ में रचना हुई है और द्वितीय वर्णवृत्त खंड है, जिसकी रचना १६७६ में हुई है। इस ग्रन्थ का विशेष परिचय आगे दिया जायगा। केटलॉगस केटलॉगरम् भाग १, पृष्ठ १८१ पर भट्ट चन्द्रशेखर रचित गंगादासीय छन्दोमंजरी की टीका 'छन्दोमञ्जरीजीवन' का भी उल्लेख है। इसकी एकमात्र प्रति इण्डिया ऑफिस लायब्रेरी लन्दन' में है। यह प्रति बंगला लिपि में लिखी हुई है। इस टोका का मंगलाचरण निम्न है: वाणी कमलामभितो दोामालिङ्गितो योऽसौ। तं नारायणमादि सुरतरुकल्पं सदा वन्दे ॥१॥ छन्दसां मञ्जरी तप्ताभिधेया स्फुटभानुना । तस्याः किं जीवनं न स्याच्चन्द्रशेखरभारती ।।२।। किन्तु, इस टीका के मंगलाचरण में टीकाकार ने अपना नाम चन्द्रशेखर -- - १-वृत्तमौक्तिक पृ० ३०६, ३१३ २-राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठाने जोधपुर के उपसंचालक श्री गोपालनारायणजी बहुरी ने इण्डिया ऑफिस लायब्ररी लन्दन के कार्यवाहकों से सम्पर्क करके इस प्रति के आद्यन्त भाग की फोटोकॉपी मंगवा कर उपलब्ध की उसके लिए मै उनका आभारी हूँ।-सं०
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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