SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 641
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५०८ ] वृत्तमौक्तिक-पञ्चम परिशिष्ट वर्ण-संख्या वृत्तनाम विषमचरणों समचरणों सन्दर्भ-ग्रन्थ-संकेतांक का लक्षण का लक्षण (५, ११) इला [स ल ग ] [स स स ल ग ] १०. (५, २४) मृगाङ्कमुखी [स ल ग ] [स स स स स स स स ] १०. (८, ३) वानरी [ज र ल ग ] [र ] १०. (८, ८) प्रवर्तकम् र ज ग ग ] [ज र ल ग ] १६. (६, १०) वैसारी [त ज र ] [म स ज ग ] १७. (१०, १०) प्रतैलम् [ज त त ग ] [त त त ग ] १७. अत्तिलम्-१७. (१०, १३) शुकावली [त ज र ग ] [म न ज र ग ] १७. (१०, १२) समुद्रकान्ता [त ज र ग ] [म स स य ] १७. (१०, १४) विलासवापी [त ज र ग ] (स भ र ज ग ग] १७. (१०, १०) विश्वप्रमा [त त त ग ] [ज त त ग ] १७. (१०, १२) सम्पातशीला [त म र ग ] [स न म य ] १७. (१०, १०) घटिका [त स ज ग ] [स स ज ग ] १७. (१०, १३) जारिणी [न त त ग ] [र र न त ग ] १७. (१०, ६) वासववन्दिता म स ज ग ] [त ज र ] १७, (१०, ११) करधा [म स ज ग ] [न न र ल ग ] १७. (१०, ११) सुधा [म स ज ग ] [स भ र ल ग ] १७. (१०,१०) प्रभासिता म स ज ग 1 स स ज ।। (१०, १२) मकरावली म स स ग ] [स भ भ स ] १०. (१०, १०) पालोलघटिका स स ज ग ] [त स ज ग । १७. (१०, १२) अरुन्तुदः [स स ज ग ] न ज ज र ] १७. (१०, १०) प्रभासिता [स स ज ग ] [म स ज ग ] १७. (१०, १२) नवनीलता स स ज ग ] [स भ ज र ] १७; अवनीलता-१७. अवलीलता-१७. (११, ११) विपरीताख्यानिकी[ज त ज ग ग ] [त त ज ग ग ] २, ५, १०, १३, १७, १८,१९, २२. (११, ११) आख्यानिकी [त त ज ग ग ] [ज त ज ग ग ] २, ५, १०, १३, १७ १६; आख्यानिका-१८ २०, २२. (११, १२) किन्नटकः [त ज ज ल ग] [स स स स ] १७. (११, ११) समयवती [तन त लग ] [सम न ल ग] १७. (११, १२) शिशिराशिखा [न न र ल ग 1 [न ज ज र ] १७. (११, १०) वैयाली न न र ल ग ] [म स ज ग ] १७. (११, ११) पाटलिका न य न ग ग ] [भ भ भ ग ग ) १७. (११, १२) साचीकृतवदना [न य भ ग ग ] [त न भ स ] १७.
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy