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________________ वृत्तमौक्तिक-चतुर्थ परिशिष्ट (घ.) छन्द-नाम प्रतिचरण वर्ण लक्षण विशेष गुच्छक , न.स.ज.न.ज.ल. सानुप्रास एवं यमकांकित १६ पद; कुसुम " न.न.न.न. २० पद; पादान्तयमक; दण्डकत्रिभङ्गी न.न.र-६. पद-संख्या ऐच्छिक. कलिका सम्पूर्णविदग्ध- २४ त.न.त.न.त.न. भ.भ. ८ पद; आशीःपद्ययुक्त त्रिभंगी कलिका द्वितीयाक्षर में भंग; मिश्रकलिका कलिका-लक्षण-भ.न.ज.ल. ६ कलिका; श्राद्यन्त में आशी:पद्य; मध्य में कलिका विरुदसहित. साधारण चण्डवृत्त सामान्यलक्षण--कलान्यास ऐच्छिक; वर्ण संख्या ३ से कम नहीं और १७ वर्ण से अधिक नहीं। जिस गण से प्रारम्भ हो वही गण अन्त तक रहना चाहिये । प्र, ङ्ग, ग्र, स्फु, स्मि, स्म, क्व इत्यादि संयुक्त वर्णो के संयोग होने पर भी इस प्रकरण में पूर्व-पूर्व वर्ण का लघुत्व होता है। मात्रिक में चतुष्कलद्वय होने पर जगण का प्रयोग निषिद्ध है। इसके अनेक भेद होते हैं। साप्तविभक्तिकीकलिका (प्रथमा विभक्ति) भ. स; (द्वितीया०) न. य; (तृतीया०) न.न.स ल.; (चतुर्थी०) त. त. त.; (पंचमी०) य. य; (षष्ठी०) त. त; (सप्तमी०) स. स; (सम्बोधन) त. न; सब विभक्तियों के चार-चार चरण होते हैं। अक्षमयी कलिका असे क्ष पर्यन्त प्रत्येक अक्षर के दो चतुष्कल होते हैं। चतुष्कल में 55, ।।।।, 5 II, I IS का यथेच्छ प्रयोग; जगण का प्रयोग निषिद्ध है। सर्वलघुकलिका १५, १६ या १७ सर्व लघु कलिका सहित खण्डावली तामरस खण्डावली र.स.स.ल.ल. कलिका के प्राद्यन्त में विरुदरहित प्राशी:पद्य प्राद्यन्त में प्राशी:पद्य. मञ्जरी खण्डावली १६मा० चार चतुष्कल जगण रहित
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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