SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 546
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उदाहरण-पद्यानुक्रम [ ४१३ वृत्त-नाम पृष्ठ-संख्या वृत्त-नाम पृष्ठ-संख्या १३७ २०६ २०३ १०५ २२२ ८१ १६६ १३६ २४७ २२७ २३४ २६५ स्कन्धं विन्ध्याद्रिस्तोष्ये भक्त्या (टि.) स्थितिनियतिमतीते स्थिरविलास स्फुरदिन्दीवरस्फुटनाट्यकडम्बस्फुटमधुरस्मितरुचिमकरन्दस्मितविस्फुरिते स्यादस्थानोपस्वगुणैरनुस्वबाहुबलेन स्वादुस्वच्छं स्वान्ते चिन्तां 5 १६० २४१ २६१ . ० . " . ru . W 1 १६७ ne सपदि कपयः समरकण्डूल- (ग.) स मानसां (टि.) सम्प्रतिलब्धजन्म-(टि.) सम्भ्रान्तैः सषडङ्गसम्बलविचकिलसरसमतिः सरुतचरणसरोजसंस्तरादिसर्वकालव्यालसर्वजनप्रिय सर्वमहं जाने सहचरि कथसह शरधि- (टि.) सहसा सादितस हि खलु त्रयाणां (ग.) साधितानन्तसाध्वीमाध्वीक. (टि.) सारङ्गाक्षीलोचनसावज्ञमुन्मील्य (टि.) सिन्धुर्गम्भीरोऽयं सिन्धुनां पृष्ठा सिन्धोर्बन्धं सिन्धोष्पारे सुजनकलितसुन्दरि नन्दनन्दन सुन्दरि नभसि सुरनतपदसुरपतिहरितोसुरासुरशिरोसुवृत्तमुक्तासौरीतटचर संसाराम्भसि २०७ २२७ २०५ २२१ a २३० W १९६ १४३ २७ १३५ १३८ १०६ wr ~~ हतदूषणकृत हरद्रवजितहरपर्वत एव हरिणीनयनावृत हरि भजत हरिरुपगत इति हरि जगहसितवदने हा तातेति ऋन्दित- (टि.) हारनूपुरहारशङ्खकुण्डलेन (टि.) हालापानो र्णहृत्वा ध्वान्तस्थितमपि हृदि कलयत हृदि कलयतु हृदि भावये हैयङ्गवचौरं हंसोत्तमाभिलषिता १६१ ७६ ११४ १४३ ४५ १३९ ७६ ८७ १४७ २०१, २०२ २०० २६४ २५६ १२७ ॥ ४२ २६२
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy