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________________ प्रथम परिशिष्ट [ ३६६ २. ठगण ५. मात्रा, भेद ८१. ।। 5. इन्द्रासन, सुनरेन्द्र, अधिप, कुञ्जर पर्याय', रदन, मेघ, ऐरावत', तारापति। २. ऽ।ऽ. सूर्य, वीणा, विराट्, मृगेन्द्र, अमृत, विहग, गरुड पर्याय', जोहल, ____ यक्ष, भुजंगम', पक्षी । ।। चाप ४. 5 हीर ५. ।।। शेखर ६. ।।। कुसुम ७. 5।।। अहिगण ८. ।।।।। पापगण तथा प्रहरण (आयुष) के विविध नाम पंचकल के वाचक हैं। १. कुञ्जर के पर्यायवाची शब्दों में वृत्तमौक्तिक के मतानुसार 'गज' शब्द सम्मिलित नहीं है । 'गज' को चतुर्मात्रिक स्वीकार किया है। २. वृत्तजातिसमुच्चय के अनुसार पञ्चमात्रिक । 55 ऐरावत के निम्न पर्याय और स्वीकृत हैं-सुरगज, सुरवारण, सुरहस्तिन् । ३. प्राकृतपैगल के अनुसार पञ्चमात्रिक 155 में गगन झम्प पोर लम्प तथा वाग्वल्लभ में दन्तावल पयोददन्त भी स्वीकृत हैं। ४. सूर के स्थान पर प्राकृतपंगल, वाणीभूषण और वाग्वल्लभ में 'सूर' है। ५. विराट के स्थान पर प्राकृतपैगल और वाणीभूषण में बिडाल है। ६. वृत्तजातिसमुच्चय में गरुडपर्यायों में निम्न शब्द और स्वीकृत हैं-पक्षिनाथ, विहगनाथ, विहगाधिपति, विहंगपति, सुपर्ण । ७. प्राकृतपंगल, वाणीभूषण और वृत्तमौक्तिक में 'भुजंगम' को ऽ।ऽ पंचमात्रिक स्वीकार, किया है जब कि वृत्तजातिसमुच्चय में 'भुजगेन्द्र, भोगिन्, विषधर' को।।। पंचमात्रिक माना है। वृत्तमौक्तिककार ने प्रहरण (प्रायुधों) के विविध नाम पञ्चकल के वाचक माने हैं, ऐसा मानते हुए भी 'प्रहरण' और 'वज्र' को।। 5 चतुष्कल में, 'पञ्चशर' को॥ चतुष्कलवाची, 'तोमर' को। ऽ त्रिमात्रिक और 'बाण' को ।। ।। चतुष्कलवाची और एकमात्रिक भी स्वीकार किया है। वृत्तजातिसमुच्चयकार ने तोमर, प्रहरण और बाण को पंचकलवाची ही माना है। साथ ही प्रहरण के नामों की निम्नलिखित तालिका भी दी है-प्रशनि, असि, आयुध, कणक, करवाल, क्षुरप्र, चाप, तोमर, धनुस्, पट्रिश, प्रालम्ब, बाण, बाणासन, मुद्गर, रथाङ्क, शक्तिदण्ड ,शर, शरासन, शिलीमुख । वृत्तजातिसमुच्चय में पुरोहित, पुरोधस् और मन्त्रिन्' शब्दों को चतुष्कल एवं पञ्चकल पाची स्वीकार किया है । वृत्तमौक्तिक, प्राकृतपैंगल और वाणीभूषण में इनका कोई भी उल्लेख नहीं है।
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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