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________________ १२ ] वृत्तमौक्तिक से भिन्न अत्यन्त प्राचीन आचार्य माना है ।' पिंगलसूत्र ही छंदों के विषय में हमारे सामने सब से प्राचीन ग्रंथ है । कुछ लोगों ने पिंगल को पाणिनि से पूर्ववर्ती ग्रंथकार माना है। ऐसे लोगों में से कुछ पिंगल को पाणिनि का मामा मानते हैं, परन्तु युधिष्ठिर मीमांसक तथा गैरोला ने पिंगल को पाणिनि का अनुज, अतः समकालीन ग्रन्थकार माना है । पिंगल का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि बाद में छन्दाशास्त्र का नाम ही पिंगल-शास्त्र हो गया । इनको ग्रन्थ सर्वाधिक प्राचीन होने के साथ ही प्रौढ़ तथा सर्वाङ्गपूर्ण है। इसमें वैदिक-छंदों के साथ ही लौकिक छंदों पर भी विस्तार से प्रकाश डाला गया है । "प्राकृत-पिंगल" का आधार भी इनका पिंगल-सूत्र ही है। परवर्ती सभी छन्दःशास्त्रकार पिंगल के ऋणी हैं। पुराणों में छन्दों का विवेचन नारदपुराण तथा अग्निपुराण भी छन्दों के विवेचन करने वाले ग्रंथ हैं । अग्निपुराण को भारतीय-साहित्य का विश्वकोश कहा जाता है। उसमें ३२८ से ३३५ तक ८ अध्यायों में छंदों का विवेचन किया गया है । अग्निपुराण में छंदों के विवेचन का आधार पिंगलरचित छंदःसूत्र-ग्रंथ ही रहा है छन्दो वक्ष्ये मूलजस्तैः पिंगलोक्तं यथाक्रमम् ।। इसमें वैदिक व लौकिक दोनों प्रकार के छन्दों का विवेचन है। नारदपुराण में पूर्व भाग के द्वितीय पाद के ५७वें अध्याय में वेदांगों का विवेचन करते हुए प्रसंगवश छंदों के लक्षण भी बताये गये हैं। वहाँ एकाक्षर-पाद छंदों से लेकर दण्डक-छंदों तक का वर्णन मिलता है । प्रस्तार-प्रक्रिया से छंदों के विविध भेदों की ओर भी संकेत किया गया है । परवर्ती छन्द-सम्बन्धी ग्रन्थ तथा ग्रन्थकार परवर्ती छंदःशास्त्र-प्रवक्ताओं में कतिपय आचार्य ऐसे हैं जिनका नामोल्लेखमात्र प्राप्त है और जिनके ग्रन्थों के नाम और ग्रन्थ अद्यावधि अनुपलब्ध हैं। यथा :१-संस्कृत साहित्य का इतिहास -कीथ (हिन्दी) पृ० ४६३ २-~-गैरोला, पृ० १६१-६२ तथा संस्कृत-व्याकरणशास्त्र का इतिहास पृ० १३२ ३- , , -गैरोला, पृ० १९२ ४-अग्निपुराण, ३२८१
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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