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________________ १० ] वृत्तमक्तिक इनका नाम भी उल्लिखित है । कालक्रम से ये बृहस्पति के पूर्ववर्ती रहे होंगे । उपर्युक्त साक्षी से तो ये बृहस्पति के गुरु ठहरते हैं । परन्तु इस बात की पुष्टि किसी अन्य सूत्र से होती नहीं जान पड़ती । ३. बृहस्पति इनका नाम उपर्युक्त तीनों परम्परानों में प्राया है । व्याकरण के बार्हस्पत्यसम्प्रदाय का अस्तित्व पं० युधिष्ठिर मीमांसक ने माना है । ' महाभारत की ऊपर दी हुई साक्षी से वेदांगों के प्रवर्तक बृहस्पति हैं । ये माहेश्वर सम्प्रदाय से भिन्न परम्परा के प्रवर्तक ज्ञात होते हैं । बृहस्पति को भारतीय परम्परा में देवगुरु माना गया है और इन्द्र इनके शिष्य कहे गये हैं । ४. इन्द्र ऐन्द्र-व्याकरण के प्रवक्ता इन्द्र का छन्दः शास्त्र के प्रवक्ता के रूप में भी उल्लेख किया जाता है । यादवप्रकाश के भाष्य की दोनों परम्पराओं में इन्द्र का नाम आया है । राजवार्तिक के अनुसार फणीन्द्र ही इन्द्र ज्ञात होता है । पं० युधिष्ठिरजी ने फणीन्द्र को पतंजलि का नाम माना है और च्यवन को दुश्च्यवन मान कर इन्द्र से अभिन्न मानने की सम्भावना प्रकट की है ।" इस विषय में अभी निश्चय पूर्वक कुछ भी कहना संभव नहीं है । ६. शुक्र यादवप्रकाश व राजवार्तिक दोनों में शुक्र का नाम आया है । सम्भव है शुक्रनीति के प्रवक्ता आचार्य शुक्र और छंदः शास्त्र के प्रवक्ता शुक्र प्रभिन्न हों । ७. कपिल— इनको मीमांसकजी ने कृतयुग का अन्तिम आचार्य माना है । जयकीर्ति के छंदः शास्त्र में यति चाहने वाले प्राचार्य के रूप में इनका नामोल्लेख किया गया है । सांख्यदर्शन के आचार्य कपिल और ये प्रभिन्न ज्ञात होते हैं । ८. माण्डव्य माण्डव्य के नाम का उल्लेख पिंगल, जयकीर्ति, यादवप्रकाश, चन्द्रशेखर भट्ट आदि द्वारा किया गया है। इनको मीमांसक जी ने त्रेतायुगीन माना है । १- वैदिक छन्दोमीमांसा, पृ० ५३-५४ २ ५८-५६ " 19
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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