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________________ वृत्तमक्तिक जिज्ञासुओं के लिये प्रस्तार - संख्या के क्रम से दिये हैं। प्रारंभ में प्रस्तारसंख्या, छन्द-नाम, लक्षण और सन्दर्भग्रन्थ के अंक, नामभेद तथा अंक दिये हैं। यह पद्धति 'क. ( १ ) मात्रिक छन्दों के लक्षण एवं नामभेद' के अनुसार ही है । इसमें अक्षरानुक्रम से इतने विशिष्ट छन्द प्राप्त हैं : ८८ ४ अक्षर ५ ६ ७ ८ ] (d) १० ११ १२ १३ १४ १५ " 11 "1 11 12 " 23 " 13 13 " १२ छन्द २७ ५५ १२० ८६ ५७ ६८ १०३ ११२ ६० ७७ ३८ "" " " " " " " 11 29 " " १६ अक्षर १७ १८ १६ २० २१ २२ २३ २४ २५ २६ 13 " 21 23 "" "3 " ,, 11 23 ३६ छन्द २७ ३३ २५ १६ १८ २० १८ २१ २० २७ " N " "" " " " " 11 " "" इस प्रकार वर्णिक -सम के ११३६, प्रकीर्णक वृत्त २४, दण्डक- वृत्त ६६ तथा अर्धसमवृत्त १५२ अर्थात् कुल १३८१ अवशिष्ट प्राप्त - छन्दों का इसमें संकलन है । विषमवृत्त के भी सैकड़ों छन्द और वैतालीय के प्रस्तार-भेद से अनेकों भेद प्राप्त होते हैं जिनका संकलन इस संग्रह में समयाभाव से नहीं किया जा सका । षष्ठ परिशिष्ट वृत्तमौक्तिक में गाथा, स्कन्धक, दोहा, रोला, रसिका, काव्य और षट्पद के प्रस्तार-भेद से भेदों के नाम एवं संक्षेप में लक्षण प्राप्त हैं किन्तु इनके उदाहरण प्राप्त नहीं हैं । ग्रन्थान्तरों में भी इनके उदाहरण प्राप्त नहीं हैं । केवल कविदर्पण में गाथा-भेदों के उदाहरण और वाग्वल्लभ में गाथा और दोहा-भेदों के लक्षणयुक्त उदाहरण प्राप्त होते हैं । अतः गाथा और दोहा-भेदों के स्वरूप का दिग्दर्शन कराने के लिये इस परिशिष्ट में वाग्वल्लभ से गाथा मौर दोहा-भेदों के लक्षण युक्त उदाहरण उद्धृत किये हैं ।
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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