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________________ भूमिका [८५ ४३ आहारगवेषणा-स्वाध्याय' अप्रकाशित ४४ चौवीस जिनस्तवन' ४५ पार्श्वनाथस्तवन ४६ मक्षोपार्श्वनाथस्तवन वृत्तमौक्तिक की दुर्गमबोध नामक टीका की रचना मेघविजयजी ने अपने शिष्य भानुविजय के पठनार्थ सं० १६५५ में की है। भट्ट लक्ष्मीनाथीय 'दुष्करोद्धार' टीका के समान ही यह टीका भी वृत्तमौक्तिक के प्रथम खण्ड, प्रथम गाथा-प्रकरण के पद्य ५१ से ८६ तक अर्थात् ३६ पद्यों पर रची गई है। पूर्व टीका की तरह यह भी ६ प्रकरणों में विभक्त है। इसमें वर्णोद्दिष्ट और वर्णनष्ट एक-साथ दे दिये हैं और वृत्तस्थ गुरु-लघु-ज्ञान का स्वतन्त्र प्रकरण नहीं है। प्रस्तार जैसे गहन विषय को मेघविजयजी ने अपनी लेखिनी द्वारा सरलतम बना दिया है। प्राकृतपिंगल, वाणीभूषण और छन्दोरत्नावली आदि ग्रन्थों के उद्धरण और अनेकों चित्र देकर प्रत्येक प्रकरण के वर्ण्य विषय का विशदता के साथ स्पष्टीकरण किया है। भाषा में प्रवाह और सरलता है । कहीं-कहीं देश्य शब्दों का प्रयोग भी मिलता है। यह टीका अद्यावधि अज्ञात और अप्राप्त थी। इसकी स्वयं टीकाकार द्वारा लिखित एक मात्र प्रति मेरे निजी संग्रह में है । परिशिष्टों का परिचय प्रथम परिशिष्ट___ इस परिशिष्ट में वृत्तमौक्तिककार द्वारा स्वीकृत पारिभाषिक-शब्दावली दो गई है। टगणादि गण, इनका प्रस्तारभेद, नाम तथा उनके पर्याय यहाँ क्रमशः दिये हैं और अन्त में इस पद्धति से मगणादि ८ गणों के पर्याय दिये हैं। पाद-टिप्पणियों में स्वयम्भूछन्द, वृत्तजातिसमुच्चय, कविदर्पण, हेमचन्द्रीयछन्दोनुशासन, प्राकृतपिंगल, वाणीभूषण और वाग्वल्लभ के साथ इस पद्धति की तुलना की है अर्थात् इन ग्रन्थकारों ने इस प्रणाली को किस रूप में स्वीकार किया है, कौन-कौन से शब्द स्वीकृत किये हैं, कौन-कौन से शब्द इन ग्रन्थों में नहीं हैं और कौन-कौन से नये पारिभाषिक शब्दों को स्वीकृत किया है। इन सब का दिग्दर्शन है। १.३- देखें, दिग्विजय-महाकाव्य - प्रस्तावना. ४-महोपाध्याय विनयसागर-संग्रह, कोटा.
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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