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________________ ७८ ] वृत्तमौक्तिक (४) वृत्तमौक्तिक में ७ प्रकीर्णक, ८ दण्डक, ८ विषम १२ वैतालीय, ७४ विरुदावली और २ खण्डावली छन्दों के लक्षण एवं उदाहरण प्राप्त हैं जब कि वाणीभूषण में इन छन्दों का उल्लेख भी नहीं है । (५) वाणीभूषण में अर्द्धसम छन्दों में केवल पुष्पिताग्रा छन्द है जब कि वृत्तमौक्तिक में १० छन्द हैं। (६) वाणीभूषण में यतिनिरूपण और गद्य-निरूपण-प्रकरण नहीं है । (७) वृत्तमौक्तिक में दोनों खण्डों के प्रकरणों की सूची है जिसमें छन्दनाम, नामभेद एवं प्रस्तार संख्या दी है; जब कि वाणीभूषण में सूची नहीं है। अतः इस तुलना से स्पष्ट है कि वाणीभूषण एक लघुकाय छन्दोग्रन्थ है जब कि वृत्तमौक्तिक छन्दों का आकर और महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। वृत्तमौक्तिक और गोविन्दविरुदावली वृत्तमौक्तिक के नवम विरुदावली प्रकरण में चण्डवृत्तों के प्रत्युदाहरण देते हुए ग्रंथकार ने श्री रूपगोस्वामी कृत गोविन्दविरुदावली का मुक्त हृदय से प्रयोग किया है । गोविन्दविरुदावली के एक या दो ही उदाहरण ग्रहण नहीं किये हैं अपितु समग्र विरुदावली ही उद्ध त कर दी है, केवल गोविन्दविरुदावली का मंगलाचरण और उपसंहार मात्र ही अवशिष्ट रहा है ।' विरुदावली छन्द-क्रम में दोनों में अन्तर है; जो तालिका से स्पष्ट है गोविन्दविरुदावली वृत्तमौक्तिक क्रम-संख्या नाम क्रम-संख्या नाम पृष्ठांक वद्धित वीर (वीरभद्र) रण (समग्र) २२२ २२५ २२४ वद्धित वीरभद्र समग्र ५ १-आदि-इयं मङ्गलरूपा स्याद् गोविन्दविरुदावली। यस्याः पठनमात्रेण श्रीगोविन्दः प्रसीदति ।। अन्त- व्युत्पन्नः सुस्थिरमतिर्गतग्लानिर्गलस्वनः । भक्तः कृष्णे भवेद् यः स विरुदावलिपाठकः ।। यः स्तौति विरुदावल्या मथुरामण्डले हरिम् । अनया रम्यया तस्मै तूर्णमेष प्रसीदति ।।
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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