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________________ ७२ ] वृत्तमौक्तिक वृत्तमौक्तिक और प्राकृतपिंगल वृत्तमौक्तिक और प्राकृतपिंगल का पालोडन करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि चन्द्रशेखर भट्ट ने वृत्तमौक्तिक के मात्रावृत्तनामक प्रथम खण्ड में न केवल प्राकृतपिंगल का आधार ही लिया है अपितु पांचवां और छठा प्रकरण तथा कतिपय स्थलों को छोड़ कर पूर्णतः प्राकृतपिंगल को छाया या अनुवाद के रूप में ही रचना की है । मुख्य अंतर है तो केवल इतना ही है कि प्राकृतपिंगल की रचना प्राकृत-अपभ्रश में है तो वृत्तमौक्तिक की रचना संस्कृत में है। दोनों ही ग्रन्थों की समानतायें इस प्रकार हैं १. दोनों ही ग्रन्थ मात्रावृत्त और वर्णवृत्त-नामक दो परिच्छेदों में विभक्त हैं । वृत्तमौक्तिक में परिच्छेद के स्थान पर 'खण्ड' शब्द का प्रयोग किया गया है । २. प्रारम्भ से अन्त तक विषयक्रम और छन्दःक्रम एकसदृश हैं जो विषय सूची से स्पष्ट है। ३. रचनाशैली में पारिभाषिक (सांकेतिक) शब्दावली और उसका प्रयोग एक-सा ही है। ४. गाथा, स्कन्धक, दोहा, रोला, रसिका, काव्य और षट्पद-नामक छन्दों के प्रस्तारभेद और नाम एकसमान हैं। नामों में यत्किंचित् अन्तर अवश्य है, जो चतुर्थ परिशिष्ट (क) में द्रष्टव्य है। दोनों में भेदों के लक्षणमात्र ही हैं, उदाहरण नहीं हैं। वृत्तमौक्तिक में गाथा-छन्द के २७ के स्थान पर २५ भेद स्वीकार किये हैं। ५. रड्डा छन्द के सातों भेदों के उदाहरण दोनों में प्राप्त नहीं हैं। ६. लक्षणों की शब्दावली भी प्रायः समान है। उदाहरण के लिये कुछ पद्य प्रस्तुत हैं प्राकृतपिंगल दीहो संजुत्तपरो बिंदुजुनो पाडिओ य चरणंते । स गुरू वंक दुमत्तो अण्णो लहु होय सुद्ध एक्ककलो ॥२॥ वृत्तमौक्तिक दीर्घः संयुक्तपरः पादान्तो वा विसर्गबिन्दुयुतः । स गुरुर्वको द्विकलो लघुरन्यः शुद्ध एककलः ॥६॥ X
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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