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________________ ७०] वृत्तमौक्तिक ___ [व्या.] अस्य-प्रवृत्तकस्य समपादकृता'-'समपादलक्षणयुक्तैश्चतुभिः पाद रचिताऽपरान्तिका। उदाहरण मुक्तक पद्यों में हैं। इसमें छन्द-नामों के अनुरूप ही शृंगार, वीर, रौद्र और शान्त आदि रसों के अनुकूल जिस शाब्दिक गठन, पालंकारिकता और लाक्षणिकता का कवि ने प्रयोग किया है वह भी दर्शनीय है । उदाहरण के तौर पर दो पद्य प्रस्तुत हैंमनोहंस-नामानुरूप उदाहरणतनुजाग्निना सखि मानसं मम दह्यते, तनुसन्धिरुष्णगदारुवत् परिभिद्यते । अधरं च शुष्यति वारिमुक्तसुशालिवत्, __ कुरु मद्गृहं कृपया सदा वनमालिमत् ॥३४४॥ [पृ० १२३] सिंहास्यछन्द के अनुरूप उदाहरणयो दैत्यानामिन्द्रं वक्षस्पीठे हस्तस्याग्रे भिद्यद् ब्रह्माण्डं व्याक्रुश्योच्चामृद्नादुः । दत्तालीकान्युन्मिश्रं निर्यद् विद्युद्वृद्धास्यस्तूणं सोऽस्माकं रक्षां कुर्याद् घोर (वीरः) सिंहास्यः ॥२६६।। [पृ० ११३] स्पष्ट है कि उल्लिखित ग्रन्थों की अपेक्षा इस ग्रन्थ की रचनाशैली विशद, स्पष्ट, सरल और विविधता को लिये हुये है। ७. छन्दजाति अद्यावधि उपलब्ध समस्त छन्दःशास्त्रियों ने एक अक्षर से छब्बीस अक्षरपर्यन्त के वणिक छन्दों की निम्नजाति-संज्ञा स्वीकार की हैउक्ता ___= १ अक्षर बहती = ९ अक्षर अत्युक्ता २ अक्षर पंक्ति = १० अक्षर मध्या अक्षर त्रिष्टुप् = ११ अक्षर प्रतिष्ठा ४ अक्षर जगती १२ अक्षर सुप्रतिष्ठा = ५ अक्षर अतिजगती १३ अक्षर गायत्री ६ अक्षर १४ अक्षर उष्णिक् ७ अक्षर अतिशक्वरी = १५ अक्षर अष्टि = १६ अक्षर शक्वरी अनुष्टुप् ८ अक्षर
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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