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________________ ६८ ] वृत्तमौक्तिक भरत के नाट्यशास्त्र के छन्द-प्रकरण में पादान्त यति तो प्राप्त है ही साथ ही पदमध्ययति भी प्राप्त है।' ऐसी अवस्था में जयकीत्ति एवं स्वयम्भू-छन्दकार ने भरत को यतिविरोधी कैसे माना, विचारणीय है ! वृत्तमौक्तिकार ने भरत को यतिसमर्थक ही माना है । यति का सांगोपांग विश्लेषण छन्द:सूत्र की हलायुधटीका, हेमचन्द्रीय छन्दोनुशासन की स्वोपज्ञटीका और वृत्तमौक्तिक में ही प्राप्त है। अन्य छन्द-शास्त्रों में कतिपय छन्द-शास्त्रियों ने इसका सामान्य-वर्णन सा ही किया है। गद्य काव्य-साहित्य का प्रमुख अंग है। प्रस्तुत ग्रन्थ में इसके भेद, प्रभेदों के लक्षण और प्रत्येक के उदाहरण प्राप्त हैं । साथ ही अन्य प्राचार्यों के मतों का उल्लेख कर उनके मतानुसार ही उदाहरण भी ग्रंथकार ने दिये हैं। इस प्रकार गद्य-काव्य का विवेचन अन्य छंदग्रंथों में प्राप्त नहीं है। संभव है इसे काव्य का अंग मानकर साहित्य-शास्त्रियों के लिये छोड़ दिया हो ! ६. रचना-शैली छन्दशास्त्र की प्राचीन और अर्वाचीन रचनाशैली अनेक रूपों में प्राप्त होती है जिनमें तोन शैलियां मुख्य हैं:-१. गद्य सूत्र रूप, २. कारिका-शैली (लक्षण सम्मत चरण रूप) और ३. पूर्णपद्य-शैली। गद्यसूत्ररूप शैली में छन्द:सूत्र, रत्नमञ्जूषा, जानाश्रयी छन्दोविचिति और हेमचन्द्रीय छन्दोनुशासन की रचनायें आती हैं। __कारिकारूपशैली में जयदेवछन्दस्, स्वयम्भूछन्द, कविदर्पण, जयकोतिकृत छन्दोनुशासन, वृत्तरत्नाकर, छन्दोमंजरी और वाग्वल्लभ की रचनायें हैं । पूर्णपद्यशैली में प्राकृतपिंगल, वाणीभूषण, श्रुतबोध और वृत्तमुक्तावली की रचनायें हैं। - भरत-नाट्यशास्त्र में लक्षण अनुष्टुप् छन्द में है, वृत्तमुक्तावली में मात्रिक छन्दों के लक्षण गद्य में हैं और वाग्वल्लभ में मात्रिक-छन्दों के लक्षण पूर्ण पद्यों में हैं। छन्दःसूत्र, रत्नमञ्जूषा, जानाश्रयी छन्दोविचिति, जयदेवछन्दस्, जयकीर्तीय छन्दोनुशासन, हेमचन्द्रीय छन्दोनुशासन, कविदर्पण, वृत्तरत्नाकर, छन्दोमञ्जरी एवं वाग्वल्लभ में लक्षणमात्र प्राप्त हैं, स्वरचित उदाहरण प्राप्त नहीं हैं। स्वयम्भूछंद, हेमचन्द्रीय छन्दोनुशासन की टीका और प्राकृतपिंगल में कतिपय १-नाट्यशास्त्र (१६, ३६)
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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