________________
१०४
सवृत्तिकः कविदर्पणः दोहा छंद जु पढम पढि
मत्त ठविज्जहि पंच सुकेहा । चूलियाउ तं बुह मुणहु
गुल्हु पयंपइ सध्वसुएहा ॥ २६ ॥ दोहा छंदु जि दुदल पढि
दह दह कलसंजुत्त सु अडसठि मत्त सवि । उवचूलिय तं बुह मुणहु
लहुगुरु गणसंजुत्त सु जंपइ अल्हकवि ॥ २७ ॥ तिहिमत्त मत्त जहि पढमपउ
बीयउ रुद्दयजुत्त । पुष्वद्ध जेम तिम उत्तरवि
सो उग्गाहु निरुत्त ॥२८॥ मत्त इगारह मिलिय पुणवि दह संचलिय
पयपय इणि परिकलिय गुरुवि लहु संकलिय । सुणवि सवणमणिरलिय जीह जहिं न हु खलिय
सुदिढबंध न हु टलिय अत्थसंगह मिलिय ॥ तह चालसउवि मत्तई रयहु गुल्ह पयंपइ नियरलिय। रासाउल छंद जु एह हुइ काइं.कविय डंखहि अलिय ॥ २९ ॥ पयपयह मत्त बत्तीस दित लहुगुरुविचित्त चउकलयजुत्त
बहुजमगसुद्ध जाणहु निरुत्त बहुमत्थजुत्त कविअल्हि उत्त । सवत्थ मत्त किज्जहि इकत्त सय इक्क ठाणि अडवीस जाणि
छाणवइ जोणि पायडिय खोणि एरिसि य वाणि दंडक्कु जाणि ॥३०॥ दोहा छंदु जि पढम पढि ___ कव्वह अद्धु निरुत्त । तं कुंडलिया बुह मुणहु
उल्लालइ संजुत्त ॥
अत्र पञ्चमात्रास्थाने यगणो वा लघुगुरुलधुद्वयरूपं वा भवतीत्याम्नायः ॥ २६ ॥ तिथिमात्राः पञ्चदशसंख्या मात्राः । एवं [द्वि पञ्चाशन्मात्रामयं उद्गाहकं छन्दः ॥ २८॥ एवं ८४ मात्राभिः पदचतुष्टयम् । तदनु ५६ मात्रामयं षट्पदवच्च उल्लालकं प्रतीतमेवं १४० मात्राभिः रासाकुलं छन्दः ॥ २९॥ अल्हउत्तत्ति अर्जुनेन कविना उक्तम् । एतदर्धे स्कन्धकच्छन्दो भवति ॥ ३०॥
२७.१ दुदलि B; ३ बहु for बुह C. २८.३ जेम तित्तडउ for जेमतिम उत्तरवि D. २९.१ इग्यारह B; २ पइप CD; पुणु D, इण C for इणि; ३ जहिं जाहिं A; ५ रइवि for रयहु D, रलिय B; ६ बि for जु D; हुत for हुइ C; झंखाहे for डंखहि D. ३०.१ पइपइहि D, पइप B, for पयपयह; २ अल्हउत्त BD; ४ छाणबहु A; छाणवय C; रसियाण for एरिसि य D.