SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थोद्देशः। अथ जातीनामुपयोगिभेदानाह--- गो गी॥१॥ सर्वांहिषु एको गुरुगीश्छन्दः ॥१॥ उक्ता ॥१॥ दो गा इत्थी ॥२॥ द्वौ गुरू स्त्रीच्छन्दः अत्युक्ता॥२॥ एकेनाहिणा प्राकृते लक्ष्म वक्तुमशक्यमिति द्वाभ्यामुक्तम् । अतः परं त्वेकैकेन समानि, द्वाभ्यामर्धसमानि, चतुर्वेकपादैविषमाणि वैतालीयानि च वक्ष्यन्ते ॥२॥ मो नारी ॥३॥ रो मृगी ॥४॥ स्पष्टम् ॥ ३॥४॥ मध्या ॥३॥ मो गो कन्ना ॥५॥ यगा वीला ॥६॥ मो गः कन्या ॥५॥ यगौ व्रीडा ॥६॥ प्रतिष्ठा ॥४॥ __ नन्दा तलगा ॥७॥ जया यो लगा ॥८॥ तलगा नन्दा ॥७॥ यो लगौ जया ॥८॥ सुप्रतिष्ठा ॥५॥ तो यो तणुमज्झा ॥९॥ यया सोमराई ॥१०॥ तो यस्तनुमध्या ॥९॥ यौ सोमराजी ॥१०॥ गायत्री ॥६॥ मो सो गो मयलेहा ॥११॥ हंसमाला ररा गो ॥१२॥ मः सो गो मदलेखा ॥११॥ रौ गो हंसमाला ॥१२॥ उष्णिक् ॥७॥ दो मा दो गा विज्जूमाला ॥ १३॥ भो तलगा माणवगं ॥१४॥ चित्तवया भगुरू दो ॥१५॥ नारायओ तरा लगा ॥१६॥ वसू लगा पमाणिया ॥१७॥ उक्कमे समाणिया उ ॥१८॥ इओ य अन्नं वियाणं ॥१९॥ मौ गौ विद्युन्माला । चतुर्भिर्यतिरनुक्तापि ज्ञेया ॥१३॥ भस्तलगा माणवकम् । अत्रापि चतुर्भिर्यतिः॥१४॥ भौ गुरुश्चि (रू चि) त्रपदा ॥१५॥ तरौ लगौ नाराचकः ॥१६॥ वसवो लगाः प्रमाणिका। अष्ट निरन्तराः लगाः प्रमाणिका ॥१७॥ व्युत्क्रमे समानिका तु । प्रमाणिकाया विपर्यये समानिका पुनरष्टौ निरन्तरा गला इत्यर्थः ॥१८॥ इतोन्यद्वितानम् । एभ्यः प्रागुक्तेभ्यो ग्रन्थान्तरोक्तेभ्यश्चकाराद्वक्ष्यमाणेभ्यः अन्यसमवृत्तं वितानम् ॥ १९॥ अनुष्टुभ् ॥८॥
SR No.023461
Book Titlekavidarpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH D Velankar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1962
Total Pages230
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy