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________________ अशुद्धम् अभासतया साधर्म्यमाने प्रमेयत्वाद्यवभेदेन द्वमौ स्तस्मिन् विवक्षाययां सदृशदशनं . ताह अपह्नवानविना द्वयोरन्येवन कविरसंम्भ सौमित्रीमैत्रि तय शुद्धिपत्रम् शुद्धम् आभासतया साधर्म्यमात्रे प्रमेयत्वाद्यभेदेन द्वयोस्तस्मिन् विवक्षायां सदृशदर्शनं तहिं अपह्नवाविना द्वयोरन्वयेन कविसंरम्भ सौमित्रिमैत्री तस्य अव्याप्ति भेदत्वाधिकरणत्वात् निर्णीताध्यवसाय अध्यवसितत्वं स्वरूपोत्प्रेक्षा जात्युत्प्रेक्षा निमित्तत्वे . दिगानानां कस्त्वच्चरित सहोक्तिसमा नृजुत्व पुटसंख्या पंक्तिसंख्या 17 14 257 45 12 49 7 . 50. 14 52. 19 54 4 57 . 5 58 1॥ 58 14 66 19 67 9 79 21 83 1 अव्याप्त भेदत्वाकरणत्वात् निर्णीताध्यसाय अध्यसितत्वं स्वरूपात्प्रेक्षा जात्युजात्प्रेक्षा निमित्वे दिगनानां कस्वच्चरित सहोक्तिस्समा नृजत्व 89 15 91 12 91 17 92 3 929 1055 110 18 122 2
SR No.023454
Book TitleAlankar Raghavam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYajneshwar Dikshit, T V Sathynarayana
PublisherOriental Research Institute
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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