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________________ केवल परोपकार करने में दत्तचित्त रहना चाहिये। मार्गानुसारी पुरुष नीतिमार्ग का आचरण करने वाला होता है, इसी से वह प्रथम स्वार्थ का साधन करके तदनन्तर परमार्थ में प्रवृत्ति करता है, अत एव मार्गानुसारी पुरुष मध्यमभेद में ही गिने जाते हैं। मध्यम भेद वाला मनुष्य मध्यस्थस्वभावी होता है, किन्तु किसी भी धर्म (मत) का द्वेषी नहीं होता, इसी से वह सब दर्शनों पर गुणानुराग रखकर प्रत्येक दर्शन से सत्य एवम् सत्य बात को ग्रहण कर लेता है और धीरे-धीरे सद्गुणी बनकर परोपकार करने में दृढ़व्रती बनता है। पूर्वोक्त चार भेद वालों की प्रशंसा का फल _ *एएसिं पुरिसाणं, जइ गुणगहणं करेसि बहुमाणं। तो आसन्नसिवसुहो, होसि तुम नत्थि संदेहो ||२२|| शब्दार्थ-(एएसिं) इन पूर्वोक्त (पुरिसाणं) पुरुषों का (बहुमाणं) बहुमान पूर्वक (जइ) जो (गुणगहणं) गुणग्रहण (करेसि) करेगा (तो) तो (तुमं) तूं (असन्नसिवसुहो) थोड़े ही समय में मोक्षसुख वाला (होसि) होवेगा (संदेहो) इसमें संदेह (नत्थि) नहीं है। एतेषां पुरुषाणां, यदि गुणग्रहणं करोषि बहुमानम् । तत आसन्नशिवसुखो, भवसि त्वं नास्ति संदेहः ।।२२।। भावार्थ-जो मनुष्य पूर्वोक्त चार भेद वाले पुरुषों के बहुमानपूर्वक गुण ग्रहण करते हैं, उनको निःसन्दे शिवसुख मिलता है। विवेचन-पूज्य पुरुषों की सादर प्रशंसा करने से अज्ञान का नाश होता है, बुद्धि निर्मल होती है, हृदय पवित्र बनता है, सद्गुणों का स्रोत बढ़ता है, अपमान का क्षय होता है, आत्मीय शक्ति का * एतेषां पुरुषाणां, यदि गुणग्रहणं करोषि बहुमानम् । तत आसन्नशिवसुखो, भवसि त्वं नास्ति संदेहः।।२२।। श्री गुणानुरागकुलक १५६
SR No.023443
Book TitleGunanuragkulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinharshgani, Yatindrasuri, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashak Trust
Publication Year1997
Total Pages200
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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