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________________ (२) नमु पोरिसि सदा, पुरिम वढ़ अंगुठमाइ अमतेर ॥ . निवि विगअंबियतिय, तिय उइगासण एगगणारा शब्दार्थः-नमुकारसी, पोरसी, साढ़पोरसी, पुरिमह, अ. व थने अगुष्टसी विगेरे बोजा श्राउ. ए सर्व मला प्रथम स्था. मकना तेर नेद थाय, बीजा स्थानकना निवि, विग अने यांबील ए त्रण नेद जाणवा. त्रीजा स्थानकना बेस', एकासणुं अने एकलगणुं ए त्रण नेद जाणवा. ॥ ७॥ - हवे उपवासने दिवसे पांच स्थानक करवान कहे जे. पढमंमि चनबाई, तेरस बीयंमि तश्य पाणस्त ॥ देसवगासं तुरिए, चरिमे जह संनवं नेयं ॥ ७॥ शब्दार्थः-पहेले स्थानके चोथ विगेरे, बीजे स्थानके नवका. रसो विगेरे तेर, त्रीजा स्थानके पाणोना, चोथे स्थानके देसावगासि अने पांचमे दिवस चरिमादि जेम घटे तेम जाणवू. ७ तह पद्यपञ्चखाणे--सु न पिटु सुरग्गयाइ वोसिर॥ करणविहीन न जन्नश्, जदावसीया बियबंदे ॥६॥ शब्दार्थ-तेमज मध्य पञ्चरकाणमा “ सूरे नग्गे विगत" इत्यादि पाठ वारंवार न कहेवो तेमज वोसिरे' ए पाठ पण वारंवारन कदेवो, एटला माटे करवानी विधि आचार्योए कही नथी. जेम आवस्सियाए' ए पाठ बोजा वांदणामां कहेता नथी तेम. तहतिविद पञ्चकाणे, नन्नति अपाणग आगारा॥ ऽविदादारे अचित्त--नोयणे तदय फासुजले ॥१०॥ - शब्दार्थः-तेमज तिनिहारना पञ्चरकापमा पाणीना न आगार कहे . वली विहार पञ्चरकाणमां अचित्त नोजन अने मासुक पाणीना श्रागार कहे . ॥ १० ॥
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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