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________________ ( १) शरीरनी पमिलेदणा, एत्रण पञ्चीश पच्चीश करवा. १३ वत्रीस दोषनो निषेध, १५ ब गुणर्नु उपज, १५ गुरु स्थापना, १६ बे अवग्रह अने १७ बसो बबीस अक्षरमां पच्चीस गुरु वर्ण-III पय अमवन्न ठाणा, गुरुवयणा आसायणतित्तीसं उविदि वीसदारेदिं, चनसया बाणनशहाणा ॥॥ शब्दार्थः-१० अगवन पद, १ए उ स्थानक, २० गुरुवचन, २१ तेत्रीस याशातना अने २२ बे प्रकारनो विधि. ए सर्व मलीने चारसो बाणुं स्थानक .॥ ए॥ ___ हवे पांच नाम, १ द्वार कहे . वंदणयं चिश्कम्म, किश्कम्मं विणयकम्मपूअकम्म। गुरुवंदणपणनामा, दवे नावे उदोहेणं ॥१०॥ ... शब्दार्थः-१ वंदनकर्म, चितिकर्म, ३कृतिकर्म, ४ पूजा कर्म अने ५ विनयकर्म. गुरुवंदननांथा पांच नाम, अव्य अनेना ब एम बे प्रकारना सामान्यथी जाणवा. ॥ १० ॥छा.१ हवे पांच दृष्टांतनुं । जुं द्वार कहे बे. सीयलय कुडुए वी-र कन्द सेवगड पालए संबे॥ पंचे ए दिता, किश्कम्मे दवन्नावहिं॥११॥ . शब्दार्थः-वंदनकर्म उपर शोतलाचार्यनो, चितिकर्म उपर कुलकाचार्यनो, कृतिकर्म उपर वीरा शालवीनो श्रने कुष्णनो, पूजाकर्म नपर राजाना बे सेवकनोश्रने विनयकर्म उपर पालक तथा शांबनो दृष्टांत जाणवो. या पांच दृष्टांत कृतिकर्म उपर अव्य अने नावथी जगवा.॥११ ॥छा. __ हवे पांच न वांदवा योग्यतुं ३ जुं द्वार कहे . पासबो उसन्नो, कुसील संसत अदाबंदो॥ उग गतिजगणेगविदा, अवंदणिजा जिणमयंमिर
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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