SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ६२ ) नव; त्रण, उ चार धने व एटलां पदो होय . तेमज तेनां अरिहंत वेश्याएं, वंदण बत्तियाए, सद्धाए, अन्नत्थ उसलिएणं, सुमेहिं अंग संचालेहिं, एवमाइएहिं जाव अरिहंताणं अने तावकार्य. ए नत्र आदि पदो जावां ॥ ३७ ॥ ed चैत्यस्वनी संपदानां नाम कहे . अवगमो निमित्तं, देनइगबहुवयंत प्रागारा || आगंतुमयागारा, नस्सग्गावहिसरूव ॥ ३८ ॥ शब्दार्थ:-- धन्युपगम संपदा, निमित्त संपदा, हेतु संपदा, एक वचनांत आगार संपदा, बहु वचनांत आगार संपदा, श्रागंतुक प्रोगार संपदा, कायोत्सर्गावधि संपदा ने रूप संपदा ए अरिहंत चेश्यानी आठ संपदान जाणवी ॥ ३८ ॥ ed araaranai पद विगेरेनी संख्या कहे बे. नामथया इस संपय--पयसम मवीस सोलवीस कम प्रदुरुत्तवस दोस- दुसय सोलह न सयं ॥ ३९॥ शब्दार्थः - नामस्तवां दिकने विषे पद समान अठावीस, सोल छाने वीस अनुक्रमे संपदा जाणवी. तेमज बीजीवार नहि उचरेला रो बसो साठ, बसो सोल ने एकसो श्राएं छा नुक्रमे जावा. ॥ ३९ ॥ परिणदाण दुवन्नसयं, कमेण सगति चडवीस तित्तीसा॥ गुणतीस वीसा, चडती सिगतीस बार गुरुवमा ४० शब्दार्थ:-- प्रणिधान सूत्रमां एकसो बावन अक्षरो जाणवा. दवे नवकारमां सात. खमासमणमां त्रण, इरियावद्दिमां चोवीस, नमुमां त्रीस, अरिहंत चेश्यामां जंगलरात्रीस, लोगस्स मां १ लोगस्स, पुरकरवरदी ने साबुदाणं. जावंति आई, जावंत के विसाहु ने व्याजनमखका संधी जय बीयराय.
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy