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नव; त्रण, उ चार धने व एटलां पदो होय . तेमज तेनां अरिहंत वेश्याएं, वंदण बत्तियाए, सद्धाए, अन्नत्थ उसलिएणं, सुमेहिं अंग संचालेहिं, एवमाइएहिं जाव अरिहंताणं अने तावकार्य. ए नत्र आदि पदो जावां ॥ ३७ ॥ ed चैत्यस्वनी संपदानां नाम कहे . अवगमो निमित्तं, देनइगबहुवयंत प्रागारा || आगंतुमयागारा, नस्सग्गावहिसरूव ॥ ३८ ॥
शब्दार्थ:-- धन्युपगम संपदा, निमित्त संपदा, हेतु संपदा, एक वचनांत आगार संपदा, बहु वचनांत आगार संपदा, श्रागंतुक प्रोगार संपदा, कायोत्सर्गावधि संपदा ने रूप संपदा ए अरिहंत चेश्यानी आठ संपदान जाणवी ॥ ३८ ॥ ed araaranai पद विगेरेनी संख्या कहे बे. नामथया इस संपय--पयसम मवीस सोलवीस कम प्रदुरुत्तवस दोस- दुसय सोलह न सयं ॥ ३९॥
शब्दार्थः - नामस्तवां दिकने विषे पद समान अठावीस, सोल छाने वीस अनुक्रमे संपदा जाणवी. तेमज बीजीवार नहि उचरेला रो बसो साठ, बसो सोल ने एकसो श्राएं छा नुक्रमे जावा. ॥ ३९ ॥ परिणदाण दुवन्नसयं, कमेण सगति चडवीस तित्तीसा॥ गुणतीस वीसा, चडती सिगतीस बार गुरुवमा ४०
शब्दार्थ:-- प्रणिधान सूत्रमां एकसो बावन अक्षरो जाणवा. दवे नवकारमां सात. खमासमणमां त्रण, इरियावद्दिमां चोवीस, नमुमां त्रीस, अरिहंत चेश्यामां जंगलरात्रीस, लोगस्स मां
१ लोगस्स, पुरकरवरदी ने साबुदाणं.
जावंति आई, जावंत के विसाहु ने व्याजनमखका संधी जय बीयराय.