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________________ ( ५३ ) शब्दार्थः १ नैषधिक आदि दशत्रिक, २ पांच निगम, ३ स्त्री पुरुषने जा रहेवानी में दिशा, ४ जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट त्रण अवग्रड्, ए त्रण प्रकारनुं चैत्यवंदन, ६ पांच अंगे प्रणि: पात, ७ नमस्कार, ८ नवकार प्रमुख नव सूत्रना सोलसोने सुमतालीश अक्षर -- ॥ २ ॥ इगसीइसयं तु पया, सगननइसंपयान पणदंगा ॥ बारदिगार चवं - दणिऊसर चिन्ह जिला ॥३॥ शब्दार्थः – वली ए नवकार प्रमुख नव सूत्रना एकसोने एकासी पद, १० ए नवसूत्रनो सत्ताणु संपदा, ११ नमुचयादि पांच , १२ बार अधिकार, १३ वांदवायोग्य, १४ शरपा करवा योग्य, १५ नामस्थापनादिक चार प्रकारना जिन ॥३॥ चरो धुइ निमित्त -- बारह देना सोल आगारा ॥ गुणबी सदोसजस्स--ग्गमाणधुत्तं च सगवेला ॥ ४ ॥ शब्दार्थः - १६ चार प्रकारनी स्तुति, १७ पापकपणादिक आठ निमित्त, १० फल साधवाना बार हेतु छाने १९ अपवादथी सोल श्रागार २० काउस्सग्गमां जंगणीश दोष, २१ कान लग्गनुं प्रमाण, १२ वीतरागनी स्तुति अनेश्३दररोज सातवखत चैत्यवंदन दसवसायणचान, सबै चिश्वंदणाई गणाई ॥ चनवीसवारेहिं, सहस्सा हुंति चनसयरा ॥ ५ ॥ शब्दार्थः - २४ देहेरामां चैत्यवंदन वखते तांबुल प्रमुख दश श्राशातनानो त्याग. श्रा उपर चारे गाथामां कहेला चोवीस द्वारे करीने सर्वे मली चैत्यवंदननां स्थानको बे हजार प्रने चुमोतेरथाय d. ॥ ५ ॥ हवे दश त्रिकनां नाम कहे डे. तिन्नि निसिदि तिन्निर्ज, पय: हिया तिन्नि चेत्र यपण मा
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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