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________________ ८. ( २० ) शब्दार्थः- दरेक वैताढ्य पर्वत उपर विद्याधर अने या नियो गीकदेव तेमनी दरेकनी बबे बधे श्रेणीयो बे; तेथे ते चार श्रेणीयो ने चोत्रीस गुणी करतां एकसो बोस श्रेणीयो थायडे, ॥१॥ ea एक गाथाथी विजयद्वार ने इहद्वार कहे बे. चक्कीजेयवाई, विजयाई इच हुंति चनतीसा ॥ मह दद व पनमाई, कुरुसु दसगं ति सोलसगं ॥ २० ॥ शब्दार्थः श्रहिं चक्रवतीये जीतेल। विजयो चोत्रीस बे. तेमज दि पद्मादि म्होटा हो व बे ने कुरुक्षेत्रमां दश ह बे. सर्व मली सोल यह थाय बे, ॥ २० ॥ ed a गाथाथी नदीद्वार कहे बे. गंगा सिंधु रत्ता, रत्तवई चन नइन पत्तेयं ॥ चन्दसदि सदस्सेदिं समगं वच्चंति जल हिमिं ॥ २२ ॥ शब्दार्थः - गंगा, सिंधु, रक्ता अने रक्तवती ए चार नदीयो बे. ते दरेक नदी चौद हजार परिवार सहित समुद्रमां जाय बे. चारे नदीयोनो परिवार उपन्न हजार बे ॥ २१ ॥ एवं अनंतरिया, चनरो पुणविस सहस्सेदिं ॥ पुरवि बन्नेदि, सहस्सेहिं जंति चनसलिला ॥२२॥ शब्दार्थः-- वली एवीज रीते हिमवंतादिकनी अभ्यंतर चार नदीयो प्रत्येक ठावीस हजार नदीयोनो परिवार सहित जाय d. [ चार नदीयोनो परिवार ११२००० ] अने विर्ष क्षेत्रनी अने रम्यक क्षेत्रनी चार नदीयो प्रत्येक बपन्न हजार नदी योनो परि वार सहित जाय बे [ चार नदीयोनो परिवार - २२४००० ) ॥२२॥ कुरूमचे, चऊरासी, सहस्सा तहय विजय सोलसेसु ॥ बत्तीसाए नईणं, चउदस सहस्साइं पत्तेर्य ॥२३॥
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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