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(४४) शब्दार्थः-श्रसन्नि तिर्यंचनो गति ज्योतसी अने वैमानीक विना बावीश दमकमां होय श्रने असन्नि तिर्यंचमां उत्पन्न थर्बु ते पांच थावर, त्रण विकलेंजिय, पंचेंप्रियतिर्यंच अने मनु. ज्योमाथी होय . ॥ १ ॥ संमुहिम मणुाणं, दह गई। पंचथावरा विगला ॥ पंचिंदिय तिरियनरा, आगश्न तेजवान विणा ॥४२॥
शब्दार्थः-समुर्छिम मनुष्योनी गति पांच थावर, प्रण विकलेंजिय, पंचेंजिय तिर्यंच अने मनुष्य ए दशेमां थायडे श्रने समुर्बिम मनुष्यमां उत्पन्न थर्बु ते तेनकाय अने वाउ. काय विना ते आठमांथी थाय .॥४२॥ (इति श्रागतिहार)
___ हवे एक गाथाथी वेदद्वार कहे . वेयतिय तिरियनरेसु, ईचीपुरिसो चनविहसुरेसु ॥ थिरविगलनारएसु, नपुंसवेन दवइ एगो ॥४३॥ .. शब्दार्थः-तिर्यंच श्रने मनुष्यने विषेत्रण वेद होय चार प्र कारना देवताने विषे स्त्रीवेद अने पुरुषवेद होय. पांच थावर, त्रण विकलें जिय श्रने नारकीने विषे एक नपुंसकवेद होय . ३
हवे वे गायाथी अल्पबहुत्वद्वार कहे . पजमणुबायरग्गी, वेमाणीअनवणनिरयवंतरिया ॥ जोइसचनपणतिरित्रा, बेइंदितेइंदिनाऊ ॥४॥
शब्दार्थः-पर्याप्ता मनुष्य सर्व दंगकथी थोमा, तेथी असं. ख्यात गुणा बादर अग्निकाय, तेथी असंख्यात गुणा वैमानीक, तेथी असंख्यात गुणा नवनपति, तेथी असंख्यात गुणा नारकी, तेथी असंख्यात गृणा व्यंतर, तेथी असंख्यात गुणा ज्योतसी, तेथी संख्यात गुणा चनरिंजिय. तेथी अधिक पंचेंजिय तिर्यंच, तथी अधिक बेजिय, तेश्रो अधिक तेरिंछिय, ते या असंख्यात