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(३५) शब्दार्थः-गर्जजतिर्यंच श्रने वानकायने चार शरीर, मनुष्यने पांच शरीर, बाकीना एक विश दमकने विषेत्रण शरीर होय. (इति शरीर धार) थावर चतुष्कने विषे नत्कृष्ट तथा जघन्यथी अंगुलना असंख्य नाग जेटलुं शरीर जाणवू. ॥५॥ सवेसिपि जहन्ना, साहाविय अंगुलस्ससंखंसो॥ उकोस पणसयधणा, नेरश्या सत्तहब सुरा ॥६॥
शब्दार्थः-बाकीनावीश दमकने स्वानाविक जघन्यथी अं. गुलनो असंख्यातमो नाग शरीर होय डे, नारको जीवो उत्कृष्टा पांचसोधनुष्य उंचा होय . देवता नत्कृष्ट सात हाथ होय . ६ गन्नतिरिसदसजोयण,वणस्सई अदियजोयणसहस्स। नर तेइंदि तिगान, वेदिय जोयणे बार ॥७॥
शब्दार्थः-गज तिर्यंच एक हजार जोजन, वनस्पति एक हजार जोजनथी कांक अधिक, मनुष्य थने तेरिचित्रण गाउ अने बे इंडिय बार योजनना उत्कृष्ट शरीर प्रमाणवाला होय . जोयणमेगं चउरिं-दि देदमुच्चत्तणं सुए नणियं ॥ वेनवियदेदं पुण, अंगुलसंखं समारंने ॥ ७॥
शब्दार्थः-चरिंजिनुं शरीर उंचपणे एक जोजन सूत्रने विषे कडं . वल! उत्तर वैक्रिय देह हमेशां पारंजे अंगुलमो: असंख्यातमो नाग होय . ॥७॥ देवनरअदिअलकं, तिरियाणं जवयजोयणसया॥ उगुणं तु नारयाणं, जणियं वेनवियसरिरं तु ॥ ए॥ __ शब्दार्थः-देवतानुं वैक्रिय शरीर एक लाख जोजननुं भने मनुष्यनु लाख जोजनथी कांक अधिक होय . तियचोनुं . नवसो योजननुं श्रने नारकीर्नु पोतानां शरीर प्रमाणथो बमणं. कघु ॥ ए॥