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________________ प्रस्तावना. या प्रकरणमालानुं पुस्तक स्वधर्माभिलाषी जैन श्रावकोना हाथमा अर्पण करवानी साथे मो तेमनी विनंती करीए बीए के, प्राजसुधीमां जैनर्धमनां बहु पुस्तको उपाइ बहार पड्यां बे. पण फक्त एक पुस्तकथी तेवां अनेक पुस्तको नो लाज मली शके तेवां पुस्तको तो घणां थोमां बहार पमेलां दीठाम यावे d. जीवाजीवादि पदार्थोंने जाणवाना हेतुथी जीवविचार नवतत्व बिगरे बहु पुस्तकोनो संग्रह करवो पमे ने तेमां व्यनो बहु खर्च थाय ते करतां थोमा खर्चथी तेवां बहु पुस्तकोनो लाज मली शके तेतुं एकज पुस्तक होय तो तेथी गरीब ने तवंगर एम सहुने खरखो लाज थइ प. अने तेवा कारणथीज यमे या प्रकरणमाला नामनुं पुस्तक उपाव्युं छे. या पुस्तकनी प्रथमावृति खपी जवाथ तथा केटलाक ग्रहस्थोनी बीजी आवृति उपाववानी जलामण थवाथी बीजी प्रवृत्ति सुधारावधारा साथे उपावी डे. च्या पुस्तकमां जीवविचार वि गरे ठावीश प्रकरणोनो समावेश थयो छे. तेमां उत्तरोत्तर वधारे रसीक ser बोधकारक प्रकरणोनो समावेश करवामां आव्यो डे. प्रथम जीवविचार, नवतत्व, दंरूक अने संग्रहणीनुं ज्ञान थया पटी इंडियाने नियममां राखवाना हेतु थी इंड्रियपराजयशतक ने पी वैराग्यदर्शक वैराग्यदशक दाखल करयुं छे. तेना पी गौतमकुलक विगेरे कुलकोनो समावेश करया पछी शाश्वता जीननी स्तुति ने शत्रुंजयकल्प विगेरे महात्म्यदर्शक प्रकरणनो समाबेस करपो बे. बेटे आत्मज्ञानं जाणपणुं थवाना कारणरूप समाधिशतक ने सऊन चित्त बज दाखल करयुं छे. बेवट ऋण प्रकरणो मूलपाठे दाखल करी या पुस्तकने पूर्ण करवामां प्राव्यं बे. मो आशा राखीए बीए के, जैनी जाइन जूदा जूदा आचार्योंए उपका रना हेतुथी बनावेला या प्रकरणने वांचवानो तथा अज्यास करवानो लान लइ ते आचार्योनो नृपकार भूलो जशे नही. या पुस्तक उपावती वखते जे कांई दृष्टिदोषथी अथवा जातिदोषथी भूल थर होय ते सऊन पुरूषोए सुधारी लेबुं. ली. प्रसिद्ध कर्ता.
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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