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________________ (२७) हवे सत्पद प्ररूपणा द्वारना पेटामा मार्गणा द्वार कहे बे. गइ इंदीए काए, जोए वेए कसाय नाणे य ॥ संजम दंसण लेसा, जव सम्मे सन्नि दारे ॥६२॥ शब्दार्थः--चार गति मार्गणा, पांच इंद्रिय मार्गणा, बकाय मार्गणा, त्रण जोग मार्गणा, त्रण वेद मार्गणा, चार कषाय मार्गणा, भाव ज्ञान मार्गणा, सात संयम मार्गणा, चार दर्शन मार्गणा, ब लेश्या मार्गा, बे जव्य मार्गणा, व सम्यक्त्व मार्गणा, बे संज्ञी मार्गाने बेदार मार्गणा. ए सर्व मलो बासठ मार्गला थाय. ed पद पारी मार्गणानां नाम कहे बे. नरगइ पििद तसजव, सन्निग्रह कायखइ असम्मत्ते॥ मुरकोण दारकेवल - दंसणनाणे न सेसेसु ॥ ६२ ॥ शब्दार्थः - मनुष्य गति, पंचेंद्रो जाति, त्रस, नव्यत्व, संज्ञी, यथाख्यात चारित्र, कायिक सम्यक्त्व, अणादारी, केव लदर्शन ने केवलज्ञान. एटली मार्गणावाला जोवो मोक पामे बे. बीजो मार्गपाउने विषे मोह नथी. ॥ ६२ ॥ ed व्यमाणादि वे द्वार कहे बे. दवमाणे सिणं जीवदद्वाणि हुंति ताणि ॥ लोगस्स प्रसंखिजे, नागे इक्को य सधेवि ॥६३॥ शब्दार्थः -- द्रव्य प्रमाण द्वार विचारे बते सिद्धना जीवद्रव्य अनंता बे. वली लोकाकाशना असंख्यात मे जागे एक सिद्ध वे. अथवा सर्व सिद्ध पण होय . ॥ ६३ ॥ ed स्पर्शनादि त्रण द्वार कहे बे. कुसणा अहिया कालो, इग सिद्ध पडुच्च साइन तो ॥ पमिवाया जावार्ज, सिद्धाणं अंतरं नचि ॥६४॥ शब्दार्थः सिद्धना जोवोनी स्पर्शना अधिक वे. एक सिद्धने '
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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