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________________ ( १८ ) कंतु वृथाकर्मकुदेवसंगात्, प्रवां बिहिनाथमतिमोमे १२ शब्दार्थ:- में मारणादि बीजा मंत्रोथी परमेष्टि मंत्रनो नाश करथो, कुशास्त्र वचनोथी श्रागम वचननो नाश करयो ने कु देवना संगथी वृथा कर्म करवानी इच्छा करो. दे नाथ ! या सर्व मने मतिम यो बे ॥ १२ ॥ विमुच्यदृक्लक्ष्यगतंजवंतं, ध्यातामयामूढधियाहृदंतः ॥ कटावकोजगनी र नाजी, कटीतटीयाः सुदृशांविलासाः॥ शब्दार्थ - हे प्रजो ! नेत्रनी सन्मुख रहेला तमने त्यजी द‍ मूढ बुद्धिवाला में स्त्रीयोनां कटाक, स्तन, गंजीर नाजी केरूना नाग ने विलासोनुं हृदयमा ध्यान कयुं बे ॥ १३ ॥ लोले क्षणावत्र निरीक्षणेन, योमान सेरागलवो विलग्नः ॥ नशुद्धसिदांत पयोधिमध्ये, धौतोप्यगात्तारककार किं १४ शब्दार्थ - हे तारक ! स्त्रीयोनां मुखने जोवाथी जे म्हारां मनने विषे थोमो रंग लाग्यो हतो, ते रंगने में शुद्ध सिद्धांत समुद्र मां धोइ नांख्यो तो पण गयो नहि, तेनुं शुं कारण ? ॥ १४ ॥ अंगंनचंगंनगणोगुणानां, न निर्मलः को पिकला विलासः ॥ स्फुरत्प्रजानप्रभुताचकापि, तथाप्यहंकारकदार्थितोदम् १५ शब्दार्थ:- म्हारुं श्रंग सारुं नथी, म्हारामां कोइ गुणसमूद नथी, कोइ निर्मल कलाविलास नथी, तेम देदीप्यमान कांति थवा कोइ पण प्रभुता नथी, तो पण हुं अहंकारथी कद र्थना पाम्यो ढुं. ॥ १५ आयुर्गलत्याशुनपापबुद्धिः, गतंवयोनोविषयाभिलाषः ॥ यत्नश्च नैषज्य विधानधर्मे, स्वामिन्महामोह विम्बनामे १६ शब्दार्थ :- हे स्वामिन्! हमेशां आयुष्य गलतुं जायते, पापाप
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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