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________________ (१०६) ॥ अथ उपकारी श्री रत्नागरसूरिजी कृत ॥ .. ॥श्री रत्नाकर पचीसी ॥ श्रेयः श्रियां मंगलकेलिसद्मः, नरेंदेवेंद्रनतांघ्रीपद्म ॥ सर्वज्ञ सतिशय प्रधान, चिरं जय ज्ञानकलानिधान । ... शब्दार्थ: मोक्ष लक्ष्मीने मंगल एवं क्रोमा करवानुं मंदिर, चक्रवर्ती ने इंडो जेमनां चरण कमलमां नमस्कार करी रह्या ने एवा, सर्वना जाण, चोत्रीश अतिशये करीने प्रधान अने ज्ञान कलाना जंडार एवा हे प्रनो ! तमे दीर्घकाल जयवंता वों. १ जगत्रयाधार क्रपावतार' रिसंसारविकारवैद्य ॥ श्रीवीतरागत्वयिमुग्धजावा,विज्ञप्रभोविज्ञपयामिकिंचित् ' शब्दार्थः--त्रण जगत्ना श्राधार, कपाना अवतार, उखे निवारवा योग्य संसाररूप विकारने उर करनारा वैद्य एवा हे विशेष जाण प्रजो ! हुं नोला नावथी तमारी श्रागल कांश विनंती करुं हुं. ॥१॥ किं बाखलीलाकलितो न बाला, , पित्रोः पुरो जल्पति निर्विकल्पः ॥ तथा ययार्थ कथयामि नाथ, ४. निजाशयं सानुशयस्तवाग्रे ॥३॥ शब्दार्थः हे नाथ ! बालक्रीमा सहित एवो बालक मा ता पितानी पागल विकल्प रहित शुं नथी बोलतो ? तेम हुँ पण तमारी पागल पश्चाताप करतो तो म्हारो पोतानो था शय कहुं बु.॥३॥ दत्तं न दानं परिशीलितं च, , न शातिशीलं न तपोनितप्तम् ॥
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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