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________________ (१७) शब्दार्थ-श्री जरतचक्रवर्ती विगेरे राजाए था अढीवीप मां जे प्रतिबिंबो निपजाव्यां ने अने देवें सूरीश्वरे स्तव्यां , ते जिनबिंब जव्यजनोने सिद्धि सुख श्रापोः ॥ २४ ॥ उस्सेद मंगुलेणं, अह जहमसेस सत्त रयणी॥ तिरिलोए पण धणु सय, सासय पमिमा पणिवयामिश्५ शब्दार्थः-उत्सेझांगुलनां प्रमाणे करी अधोलोकमां श्रने न ध्वलोकमां सर्वे सात हाथनी अने तिमीलोकमां पांचसो धनुष्य नी शाश्वति प्रतिमाने हुं प्रणमुं बु.॥ १५॥ .. ॥ इति शाश्वत जिननामादि संख्यास्तवन समाप्तम् ॥ ॥ अथ त्रिलोक चैत्य बिंब संख्या ॥ ॥ अधोलोकमां जिननुवनबिंब संख्या ॥ स्थान स्थाननां नाम जुवन संख्या जिनबिंब संख्या संख्या असुरकुमारमां॥ ६४00000 ११५२०००००० नागकुमारमा॥ | ८४00000 १५१२०००००० सुवर्णकुमारमां॥ २ लाख १२ए६०००००० विद्यतकुमारमा ६ लाख १३६0000000 अग्निकुमारमा ॥ | ७६ लाख १३६८००0000 बीपकुमारमा ॥ | ७६ लाख १३६0000000 उदधिकुमारमा॥ ७६ लाख १३६न000000 दिगकुमारमा ॥ ७६ लाख १३६न000000 वायुकुमारमा ।। ए६ लाख १७२७000000 स्तनितकुमारमां॥ ७६ लाख १३६0000000 कुल प्रत्येकाचैत्ये प्रतिमा २७० | 79200000 | १३नए६००0000 RE orror w sun - PB -
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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