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________________ ( १६३ ) तद दाण सीलतवना - वान हवाई भावविणा ॥२॥ शद्दार्थः--जेम चूना बिना तांबुल अपने पास विना वस्त्र रंग न पामे, तेम जाव विना दान, शीव, तप ने जावना अफल जाणवी. मणिमंतन सहीणं, जंतयतंताण देवयापि ॥ जावे विणा सिद्धि, न हु कस्सइ दोसई लोए ॥ ३ ॥ शब्दार्थः - लोकमां नगि, मंत्र औषधी, जंत्र, तंत्र छाने देवतानी उपासनानी पण नाव बिना सिद्धि कोइने देखाती नथीज. सुहजावणावसेणं, पसंद चंदो मुहुत्तमित्ते ॥ खविण कम्मगंठिं, संपत्तो केवलं नाणं ॥ ४॥ शब्दार्थः--शुन जावनाना वश्यथी प्रसत्र चंद्रराजा मुहूर्त्त मात्रमा कर्मनी गांठ खपावी केवलज्ञान पाम्यो० ॥ ४ ॥ सुस्ती पाए, गुरुणां गरहिऊण नियदोसे ॥ उप्पन्न दिखनाणा, मिगाव जय सुदजावा ||८|| ने पोतानां दो थयेला केवल • शब्दार्थ - गुरुजीना पगनी सेवा करती पनी निंदा करवाथी शुभ जावने लीधे उत्पन्न ज्ञानवाली मृगावती जयवंती वर्त्तो ॥ ५ ॥ जयवं ईलाई पुत्तो, गुरु वंसंमि जो समारुढो ॥ द मुनिवरिंदे, सुदनावा केवल जाओ ॥ ६ ॥ शब्दार्थः- म्होटा वांस उपर चमेला पूज्य श्लाचि पुत्र गोरी करता मुनश्वरने जोइ शुन जावथ केवली थथा. कविलोच्य बंभणमुण, सोगवािई मद्ययारंमि ॥ लादालोहत्तिपयं, काणंतो जायजाईसरो ॥ ७ ॥ शब्दार्थः -- कपिल नामना ब्राह्मण मुनि अशोकवामी मां पोतानां मनथी ( जहा लादो तहा लोहो, बादा लोहो प्रवहु ॥
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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