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________________ (१५) सवेसिपि वयाणं, जग्गाणं आदि कोइ पमिआरो॥ पकघमस्सव कन्ना,न दोइ सोलं पुणो नग्गं ॥१७॥ शब्दार्थः-सर्वे एवाय पण नागेला व्रतनो कोइ पण बालोयणादि उपाय डे, पण जेम पाका घमाने कांग चोमवानो कोश उपाय नथी तेम जागेला शीलनो फरी को उपाय नथी.॥१॥ वेयालनुअरस्कस-केसरिचित्तयगइंदसष्पाणं ॥ खोलाइ दल दप्पं, पालंतो निम्मलं सीवं ॥१॥ शब्दार्थ-निर्मल शील पालनारो पुरुष वैताल, जूत, राक्षस, के शरीरसिंह,चित्रा,हाथोश्रनेसपना गर्वने सोवामात्रमा दक्ष नांखेडे जे केइ कम्ममुक्का, सिहा सिद्यति सिधिहिंति तदा ॥ सवेसि तेसिं बलं, विसाल सीलस्स मादप्पं ॥२०॥ शब्दार्थ- को कर्म मुक्त जीवो सिफथया,सिक थायडे तेमज सिक थशे; ते सर्वेने विशाख शीखना महात्म्यज बल ने अर्थात् शीलना बलथी सिफिपद पामे .॥॥२०॥ ॥ इति शीत्र कुलक॥ ॥ अथ तपकुलक॥ सो जयन जुगाजिणो, जस्संसे सोदए जमामनमो ॥ तवाणग्गिपलिविय, कम्भिधणधूमपंत्तिव ॥१॥ शब्दार्थ-तप ध्यानरूप अग्निथो बलता एवा कमरूप इंध पांना धूमामानी पेठे जेमना खजाने विषे जटारूप मुकुट शोनतो हतो ते श्री युगादि जिनेश्वर जयवंता वर्तो.॥१॥ संवरियतवेणं कासगंमि जो पिन नयवं ॥ पूरियनिययपश्नो, हरउ दुरिआई बाहुबली ॥२॥
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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