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________________ ( १३२ ) शब्दार्थ :- हे व्यजीवो ! बोध पामो. शा माटे बोध पा मता नथी ? मृत्यु पाम्या पठी परजवमां बोधि दुर्व्वन बे. गये खां रात्री दिवस पाठा यावतां नथी. तेमज जीवित पण फरी मल सुलन नथी. ॥ ७३ ॥ पासद, गनचावि चयंति माणवा ॥ कहरा वुढा से जह वट्टयं हरे, एवं प्रानखयंमि तु ॥७४॥ शब्दार्थः -- बालक, वृद्ध ने गर्जमां रहेला माणसो मृत्यु पामे बे, तेने तुं जो. वल्ली जेम सिंचाणो तेतरने मारे बे तेम श्रायुष्यनो कय ये जीवित त्रुटी जाय बे. ॥ ७४ ॥ ( श्रार्यावृत्तम् . ) तिहुजणं मतं, दण नयंति जे न अप्पाणं ॥ विरमंति न पावानं, धिधि धित्तणं ताणं ॥ ७५ ॥ शब्दार्थः- जे पुरुषो मृत्यु पामता एवात्र जुवनना माणसोने जोता बता पोताना श्रात्माने धर्मने विषे स्थापन करता नथी ने प्रापथी निवर्त्तता नथी, तेज॑नां धरणाने धिक्कार बे ! धिकार बे !! मा मा पद बहुअं, जे बडा चिक्कदिकम्मेदिं ॥ सवेसि ते सिजाय, हियोवएसो मदादोसो ॥ ७६ ॥ शब्दार्थः -- ( अयोग्य शिष्योने उपदेश करता गुरुने जोइ योग्य शिष्य गुरुने कड़े बे के ) " हे गुरो ! जे पुरुषो पोतानां चिकणां कर्मी बंघायलां बे, तेमने बहु उपदेश न करो, कारण के ते योग्य शिष्योने हितोपदेश महा दोषवालो थाय बे. ॥१६॥ कुसि ममत्तं धणसय-ण विवपमुहेसु तदुकेसु ॥ सिढिलेसि प्रायरं पुण, प्रांतसुखंमि मुखंमि ॥७७॥ शब्दार्थः श्रात्मन् ! तुं अनंत दुःखनां कारण एवा धन
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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