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शब्दार्थ - संसारमां कर्मनां वश्यथी सर्व जीवोने एक जात नी अवस्था रहेली नथी. कारण के, पूर्वना जवमां माता होय ते बीजा नवमां स्त्री यर जाय, स्त्री होय ते माता थाय, पिता होय ते पुत्राने पुत्र होय ते पिता थाय ॥ २२ ॥
(अनुष्टुपूवृत्तम् )
नसा जाई न सा जोणी, न तं ठाणं न तं कुलं ॥ न जाया न मुच्या जब, सवे जीवा प्रांतसो ॥ २३ ॥
शब्दार्थः--जेमां सर्वे जीवो अनंतीवार उत्पन्न थया नथी अ ने मृत्यु पाम्या नथी एवी कोइ जाति, योनी, स्थान के कुल नथी. ( श्रार्यावृत्तम् )
तं किंपिणं, लोए वालग्गको निमित्तंति ॥ जव न जीवा बहुसो, सुददुकपरंपरं पत्ता ॥ २४ ॥
शब्दार्थः जेमां जीवो बहुवार सुख दुःखनी परंपराने नथी पाम्या; एवं लोकमां वालना अग्रभाग जेटबुं कोइपण स्थान नथी. सवान र दीर्ड, पत्ता सवेवि सय संबंधा ॥ संसारे तो विरमसु, तत्तो जइ मुसि प्रमाणं ॥ २५॥ शब्दार्थ :- हे जीव तने श्रा संसारमां सर्वे समृद्धि ने सर्वे स्वजनादि संबंध प्राप्त थाय बे, माटे जो पोताने सुखो जातो दोय तो तेथी विराम पाम ||२५|| एगो बंधइ कम्मं, एगो वहबंध मरणवण साई ॥ विसदर नवंमि ममइ, एगुच्चि
कम्मवेलविन २६
शब्दार्थः-- जीव पोते एकलोज कर्मने बांधे बे, एकलो व ध, बंधन छाने मरणनी आपत्तिने सहन करे बे; वली एकलोज कर्म थी गायो तो संसारमां जमे बे. ॥२६॥